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गोरा

-- । गोरा [ Yº? प्रायश्चित्त अनुष्ठान की विपुल आयोजना के बीच उसका हृदयवासी कोई एक गृह-शत्रु उसके विरुद्ध आज कह रहा था--अन्याय घोर अन्याय ! अन्याय ! यह नियम की त्रुटि नहीं मन्त्रका भ्रम नहीं शास्त्र की विरुद्धता नहीं अन्याय प्रकृति के भीतर है। इसीलिए गोरा का अन्तःकरण इस अनुष्ठान उद्योगसे विमुख हो पड़ा ! वह जो कुछ कह रहा था ऊपरके मन से । भीतर उसका मन अनेक आशङ्काओं से भरा था। समय समीप आया । शामियाना खड़ा करके समात्थान प्रस्तुत किया गया । गोरा गङ्गास्नान करके कपड़ा बदलने लगा इसी समय लोगों की भीड़में एक प्रकारकी चंचलता फैल गई। मानों चारों ओर क्रमशः एक उद्वेगका श्रोत उमड़ पड़ा। आखिर अविनाशने मुँह उदास करके गोरा से कहा-आपके घर से खबर आई है कि कृष्णदयाल बाबूके मुँहसे रक्त जा रहा है । उन्होंने आपको बहुत जल्द ले आने के लिए, गाड़ी के साथ श्रादमी मेजा है। गोरा मट गाड़ी पर सवार हो उनको देखने गया अविनाश उनके साथ जाने को उद्यत हुआ । गोराने कहा--तुम सबके स्वागत सत्कार करने को यहीं रहो। तुम्हारे जानेसे यहां का काम न चलेगा। गोराने कृष्णदयालके कमरे में जाकर देखा, वे बिछौने पर लेटे हैं और आनन्दमयी उनके पायताने बैठी धीरे धीरे उनके पैर दाब रही हैं । गोरा ने उद्विग्न होकर दोनोके मुंह की ओर देखा कृष्णदयालने उसे पास ही रक्खी हुई एक कुरसी पर बैठने का इशारा किया । गोरा बैठ गया उसने माँ से पूछा-अब कैसी तबीयत है ? आनन्दमयी--अब कुछ अच्छे हैं। एक आदमी अँगरेज डाक्टर को बुलाने गया है। कोठेमें शशिमुखी और नौकर था। कृष्णदयालने हाथ हिला कर उन दोनों को कोठे से जाने का संकेत किया। ...जब देखा कि सब चले गये तब उन्होंने चुपचाप अानन्दनयी के मुंह की ओर देखा और कोमल स्वरमें गोरासे कहा- मेरा समय अब समीप आ.