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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१२९

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मोवीया की लड़की १३१ का मौसम था और उसे गोभी खरीदने के लिए काफी पैसे नहीं मिले थे । बहुत दुखी होकर वह गुस्से में भर कर सड़क पर निकल पाया । कुछ देर तफ एक तरकारी के बाग में बैठा रहा और गुस्से को छिपाने की कोशिश करता रहा । फिर उठ कर शहर में पाया जहाँ एक गन्द्र शरारखाने में बैठकर उसने वोदका पी और घ्रचानक अपने को चर्च चौक में पाया जहाँ एक छोटे से याग के सामने पांच भई गुम्बजों याला गिरजा खड़ा था । हवा चल रही थी और एक लटकती हुई रस्सी घण्टों से बार बार टकरा उठती थी जिससे पीतल में से हल्की सिमकी की सी श्रावाज उत्पन्न हो उठती थी । सडक की पत्तियों की रोशनी एक घेरे में चर्च के चारो पोर श्रावेश से कांप रही थी और गुम्बजों के उपर लगे हुए क्रॉमों के ऊपर होकर भूरे हलके बादल हवा में तैर रहे थे । उनके बीच में बिलकुल खाली और ठंडे श्राफाश के नीले गढ्ढे दिखाई देने लगते थे । ऐसा लग रहा था मानो हवा इन प्रकाश की विपकियों से होकर तूफान को तेजी से यह रही हो । कभी फगो एक भयभीत चन्द्रमा बदलों में अपना चेहरा दिवा देता जो उसके चारों शोर इस तरद इयछे हो गये थे जैसे चांदी के एक सिक्के पर भिसारियों का मुंह टूट परता है । चे चन्द्रमा के उज्ज्वल मुख पर अपने गोले शरीरों को रगर कर कलंक को भयंकर कालिमा पोत रहे थे । हवा पृथ्यो को इस प्रकार झमझोर रही यो जैसे कोई बदमिजाज नसं किसी टुपराए हुए बच्चे की खाट को मक्झोरती है । याकोव एक मीट पर बैठा हुआ अपने व्याकुल मस्तिष्क को छायों से पकदै ग, जीवन के क र मजाकों के यारे में सोच रहा था कि जिवना हो कोई व्यक्ति शची बीजों के पीछे भागठाई उमे बदले में रतनी ही बुराई मिलती है । वाई कर उसके पास बैठ गया । उसने पिर ऊपर लाया एक लदको यो । उसने सोचा कि जैसा होना चाहिये था वही था । घोर चौर पन्या को छोड़कर घऔर ऐसा कौन ई जो इतने पराय मौसम में बिलान नि धान में फैले हुए घादमी के पास आने का साहस रंगा ?