पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१७०

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बुढ़िया इजरगिल क्या दिन भर के परिश्रम से बुरी तरह थके हुए नहीं हैं ? उन्होंने सूर्योदय से सूर्यास्त पर्यन्त घोर परिश्रम किया परन्तु जैसे ही चाँद निकला उन्होंने गाना प्रारम्भ कर दिया । परन्तु वे लोग, जो भली प्रकार जीना नहीं जानते , सोने चले गए होंगे और वे लोग जो जिन्दगी को प्रानन्द से भरी पूरी मानते हैं - गा रहे हैं । " " परन्तु उन्हें तन्दुरुस्ती • " मैंने कहना प्रारम्भ किया । " जीवित रहने के लिए प्रत्येक का स्वास्थ्य ठीक होता है । स्वास्थ्य । अगर तुम्हारे पास पैसा है तो क्या तुम उसे खर्च नहीं करोगे । स्वास्थ्य भी धन की तरह है । तुम जानते हो जब मैं जवान थी तब मैंने क्या किया था ? मैं सूर्योदय से सूर्यास्त तक वराबर गलीचे बुना करती थी , बिना एक क्षण भी विश्राम किए । मैं सूर्य किरन के समान जीवन के प्रकाश से भरी हुई थी , परन्तु फिर भी मुझे दिन भर विना हिले हुले एक ही स्थान पर मूति की तरह बैठा रहना पड़ता था । और मैं इतनी देर तक बैठी रहती थी कि मेरी हड़ियाँ दर्द करने लगती थीं । लेकिन रात होते ही मैं भाग कर अपने प्रेमी के पास पहुँच जाती और उसे श्रालिगन मे श्राबद्ध कर लेती । मैं लगातार तीन महीने तक ऐसा करती रही जब तक कि प्रेम का उफान शान्त न हो गया । मैं पूरी रात उसके साथ बिताती और फिर भी मैं अव तक जीवित हूँ । मेरी धमनियों में काफी खून है । मैंने जीवन में कितना प्यार किया है, कितने चुम्बनों का आदान प्रदान हुआ है और. .. " मैंने उसकी आँखों में गहराई से देखा । उसकी काली ओख निष्प्रभ थों । इन सुखद स्मृतियों ने भी उनमें जीवन की चमक नहीं जगा पाई थी । चाँद की रोशनी में उसके सूखे, पपड़ी पढ़े हुए हॉठ, भूरे बालों वाली सावली ठोड़ी और मुरियोदार नाक जो उल्लू की चोंच सी दिखाई दे रही थी , चमक रही थी । उसके गालों में गडढे पद गए थे जिनसे राख जैसे रग के मटमले बाल चिपके हुए थे । ये वाल टस लाल रगवाले उनी शाल के थे जिसे वह अपने सिर पर बाधे रहती थी । उसका चेहरा, गर्दन और हाथ मुरियों से भरे हुए थे । प्रत्येक वार जब वह हिलती