पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७४ बुढ़ियाइ जरगिल - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - निस्तब्ध हो गई थों — समुद्र की उन गरजती हुई लहरों की ध्वनि ने उन्हें डुवा दिया था क्योंकि हवा तेज चलने लगी थी । "मैं एक तुर्क को भी प्यार करती थी । मैं स्कुतरी में उसके हरम में रहती थी । मैं वहाँ पूरे एक हफ्ते रही वहाँ का जीवन इतना बुरा तो नहीं था परन्तु मैं उससे ऊव उठी । वहाँ चारों ओर स्त्रियाँ - केवल स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ थी । उनकी संख्या पाठ थो । दिन भर वे खाती , सोती और बेवकूफी की बाते करती - यही उनके काम ये । या वे श्रापस में मुगियों की तरह बढ़ने लगती । वह तुर्क अब जवान नहीं रहा था । उसके लगभग सभी बाल सफेद हो गए थे और वह बेहद मोटा दिखाई देने लगा था । वह मालदार भी था । और एक पादरी की तरह बाते करता था । उसकी पाखे काली और इतनी मम भेदिनी थीं कि उनसे वह आपके हृदय का पूरा भेद मालूम कर लेने की क्षमता रसता था । वह नमाज पढ़ने का भी वहुत शौकीन था । मैंने सबसे पहले उसे बुखारेस्ट मे देखा - बाज़ार में घूमते हुए । वह एक राजा की तरह सिर उठाकर चल रहा था । म उसे देखकर मुस्कराई । उसी दिन शाम को मुझे पकटकर उसके घर ले जाया गया । वह चन्दन और नारियल की लकडी का व्यापार करता था और बुखारेस्ट कुछ माल खरीदने पाया था । उसने मुझमे पूछा - क्या तुम मेरे साथ चलोगी ? हाँ , अवश्य ठीक है । और मैं उसके साथ चली आई । वह तुर्क वहुत धनी था उसके एक बेटा था - छोटा सा लावले रंग का सुन्दर लड़का । वह लगभग सोलह वर्ष का होगा । उसके साथ मै तुर्क के यहाँ से भाग निकली और भागकर वल्गेरियन पहुची । वहाँ एक वल्गेरियन औरत ने अपने प्रमी के कारण गेरी छाती में छुरा मार दिया । वह यादमी उसका प्रेमी था य पति- मुझे ठीक तरह से याद नहीं । " ___ " मैं पाटरिनों के एक मठ मे बहुत दिनो तक बीमार पड़ी रही । पालेन्ड की रहने वाली एक लड़की ने मेरी सेवा- सुथ पा की । उसका एक भाई था जो थरजार-पालका के पास एक मठ का पाढरी था । यह कभी कभी मुमसे मिलने पाया करता था । मेरे सामने वह एक कीडे की तरह