नमक का दलदल २३० " वैसे ही जैसे तुम आ गए । " " वो तुम्हें भी चोरी के जुर्म में गांव से निकाल दिया गया था । " यह क्या माजरा है ? " यह अनुभव करते हुए कि मुझे फांस लिया गया मैंने पूछा । ___ " मैं यहाँ इसलिए पाया था क्योकि मुझे चोरी के कारण गाँव से निकाल दिया गया था और तुमने अभी कहा कि तुम भी उसी वजह से श्राए हो , " और मुझे फन्दे में फांसने की सफलता पर वह खिलखिला कर इसने लगा । उसका साथी खामोश रहा । उसने मेरी तरफ सिर्फ आँख मारी और पूर्तता के साथ मुस्कराने लगा । "ठहरो • " मैंने कहना शुरू किया । " इन्तजार करने का समय नहीं दोस्त । काम पर वापस जाना है । चलो, ठठो । मेरा ठेला ले लो और लाइन में मेरे पीछे रहना । मेरा ठेला यस अच्छा है । चलो । " थौर वह घरला गया । मैं उसका ठेला पकड़ने ही वाला था कि उसने जल्दी से कहा " ठहरो, मैं खुद उठा लूगा । अपना मुझे दे दो । मैं अपना इसमें रख लूंगा और इसे सवारी कराऊंगा - इसे थोड़ा सा पाराम सो कर लेने दो । " मेरे मन में शक पैदा हो गया । उसके साथ साथ चलते हुए मैंने उसके ठेले को गौर में देखा जो मेरे ठेले में उल्टा पड़ा हुआ था । ऐसा मैंने इस लिए किया कि कहीं मेरे साथ कोई शैतानी न की जा रही हो । मगर जिस यात पर मैने गौर किया वह यह थी कि मै एकाएक सबके श्रादर्पण का केन्द्र धन गया था । इसे छिपाने के प्रयत्न किए गए मगर मेरी तरफ रहरह कर घोप मारना, इशारे करना और फुसफुसाना यह बता रहा था कि जरूर कोई पात है । मैं जानता या कि मुझे सतर्क रहना चाहिए और मैंने सोचा कि पहले नो पद हो चुका है उसे देखते हुप इस बार जो कुछ होगा यह नितान्व मौलिक होगा ।
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