पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२५८

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दो नन्हें बच्चों की कहानी २१ काका, जो बुरी तरह कांप रही थी , उठकर खड़ी हो गई " बहुत , बहुत ज्यादा ठंड है, " लड़की फुसफुसाई सचमुच ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई थी । धीरे धीरे बरफ के वादन अ. र ठोस हो गए थे जो कहीं वरफ के खम्भों के रूप में तथा कहीं हीरे जड़े विशाल परदों के रूप में दिखाई पड़ते थे । जब वे सड़क को बत्तियों के ऊपर होकर निकलते या रोशनी से चमकती हुई दूकानों की खिड़कियों के सामने होकर गुजरते तो वदा सुन्दर दृश्य उत्पन्न कर देते थे । वे विभिन्न प्रकार के रंगों से चमक रहे थे । उनकी ठंडी तीखी चमक आँखों में दर्द पैदा कर देती थी । ____ मगर इस दृश्य का सौन्दर्य मेरे नन्हे नायक और नायिका को श्राकर्पित करने में असमर्थ रहा । " श्रोहो ! " अपने खोल में से नाक याहर निकालते हुए मिश्का बोला, "यह वो पूरा टैना का टैना पा रहा है ! चल का का , उठ ! " " दयालु सज्जनो ..... , " लड़की सड़क पर दौड़ती हुई कांपती -- श्रापज में धोखी । ___ " सबसे छोटा सिक्का , मिश्का, " ने प्रार्थना की और फिर जोर से चीपा " भाग कारका । " ____ो शैतान, जरा मेरे हाय तो पड़ जाम्रो ! " एक लम्बे पुलिस के सिपाही ने दपदा जो पचानक फुटपाथ पर श्रा निकला था । मगर वे दिसाई भी नहीं पड़े । दोनों में लुढ़कती हुई घणभर में ही चौधों में प्रोझन हो गई । भाग गए वान, " पुलिस वाला हिनहिनाया और सड़क की तरफ देवकर प्रसन्न होकर मुस्करा उठा । दोनो नन्तान अपनी पूरी तारुत से दोपते और सते पले जा या काका र यारबार उमफे फपरे में उलझ जाता था जिसमे यह गिर परती थी । " भगवान् फिर गिर पड़ी जमे हो वह गिरनी सो उरमी तुट