पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२७०

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दो नन्हे बच्चो की कहानी २३७ "मुझे थोटी सी चाय मिल जायेगी, महाशय ?" मिरका ने काउन्टर को अपने हाथों से थपथपाते हुए कहा । __"चाय ? जरूर मिलेगी। अपने श्राप ले लो । जाफर धोडा मा गरम पानी ले श्राश्री । ध्यान रसना कोई चीज हटने न पाये। अगर तोड़ दी ना नम्हारी तवियत मक कर दूंगा।" मगर मिश्का बेटर को बुलाने दौड़ ग ।।। दो मिनट बाद, एक ठेला हॉकने वाले की सी मुद्रा में जिसने दिन में अच्छी कमाई की थी, सिगरेट बनाता हुआ मिश्का अपनी लड़की की बगल में बैठा हुया था । कात्का उसकी तरफ प्रशंसात्मक दृष्टि से देस रही थी। उसके नेत्रों में यह देखकर आश्चर्य और भय का सा भाव छा रहा था कि मिका लोगों की भीड़ में भी किरानी थापानी से अपना काम बना पाया था । होटल के कान फाड़ने वाले शोरगुल में काका की जान सी निकली जा रही थी और हर पण उमे यह भय लग रहा था कि किसी भी जण उन दोनों को कान पका कर बाहर निकाल दिया जा सकता है । मगर उसने किसी भी दशा में मिका पर अपने इन भावों को प्रकट नहीं होने दिया। इसलिए उसने अपने दुरंगे बालों पर हाथ फेरा और पूर्ण रूप से यह दिखाने की कोशिश करने लगी रि इस सब का उस पर कोई प्रभाव नहीं पढ़ रहा । ऐसा करने में उसके गन्द गाल वारवार लाल हो उठते थे और अपनी परेशानी को छिपाने के लिए वह वारवार अपनी ओस सिकोर रही थी। इसी बीच मिम्का गम्भीरता के साथ उसे तरीके बता रहा था और ऐसा करने में यह सिग्नी नामक एक कुली के स्वर और शब्दावली की नकल करने की कोशिश कर रहा था जो टमकी दृष्टि में शराय के नमो फी दशा में भी अत्यन्त प्रभाव शाली प्रतीत होता था तथा चोरी में तीन महीने की सजा काट चुका था। "तो मिसाल तौर पर यह मोच लो कि नुम भोग्न मोंग गोही! न से भीप मोगांगी टकना नाही याचा ना कि, ' ' से। भीर माँगने का या नरीका नी । नुन्ई परना या शारि