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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२७२

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दो नन्हे बच्चों की कहानी २५३ और बाहर को निकलने की सी लगती तो गनीर मिश्का नाराज होकर कहता ___ "इतनी तेजी से भागी जा रही हो, मैडम ।" जिसे सुन कर उसे बडे कौर को तेजो ने निगलने के प्रयत्न में काका की दम घुटने लगती और यह मेरी कहानी का अन्त है । मुझे इस बात का तनिक भी पछतावा नहीं है कि यह बताऊँ कि इन बच्चों ने वह शाम कैसे समाप्त की । तुम इस बात का पूरा विश्वास कर सकते हो कि उनका ठिठुर कर मर जाने का कोई भय नहीं है । वे जोषित है। पाखिर मैं उन्हें वएड से ठिठुरा कर क्यो मार ढालू।। मै इस बात को सबसे बड़ी बंवकूफी समझता हूँ कि उन बच्चों को ठण्ड में ठिठुरा कर मार डाल जिन्हे एक दिन इस तरह मरना ही है जो इससे अधिक स्वाभाविक और माधारण इन होगा।