सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मालवा ४६ - - 1 "क्या ?" मालवा ने खामोशी से पूछा । "कुछ नहीं!" "उसने मालवा की तरफ से मुंह मोड़ लिया और चुप हो गया परन्तु वह बहादुर और श्रात्म-विश्वास से पूर्ण लग रहा था । "क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है ।" मालवा बोली “यहां के एजेन्ट के पास एक काला पिल्ला है । तुमने उसे देखा है ? वह तुम्हारी ही तरह है । भौंकवा है और काटने को धमकी देता है तभी जब तुम उससे दूर होत हो । परन्तु जब तुम उसके पास जायो तो वह टांगों में पूच व्याकर भाग जाता है।" "अच्छा!" याकोव गुस्से से बोला-"तुम देखना ! मैं तुम्हें चता दूंगा कि मैं किस धातु का बना हूँ।" मालवा हँस पड़ी। एक लम्बा-तहंगा मजबूत यादमी, जिसका चेहरा सांवला था और जिसके सिर पर घने भयानक लाल बाल थे, धीमे कदम रखता हुथा उनके पास आया। उसकी लाल सूती कमोज जिसे यह यिना पेटी के वाधं हुए था पीठ पर कालर तक फटी हुई थी और पास्तीनों को नीचे खिसकने में रोकने के लिए उसने उन्हें कन्धे तक चढ़ा लिया था। उसकी पतलून विभिन्न प्रकार की थाकृतियों और श्राकारों वाले छेदों का एक गोरखधन्धा मी लग रही थी। उसके पैर नंगे थे। चेहरे पर घने चित्तीदार धब्बे पड़े हुए थे। बड़ी नीली झेखों में एक भयाहर चमक यी सौर घोड़ो य ऊपर की ओर उठी हुई नाफ उसकी कठोर शोर कर माहमी प्रकृति का परिचय दे रही थी। उनके पास पहुंच कर वह रक गया ! उसको पोशार में बने पदों में से दीखते हुए उसके शरीर के अनेक हिल्ले धूप में चमक रहे थे । उमने जोर से नाक साफ की और उन दोनों की बरसा प्रश्नसूचक दृष्टि से देखते हुए अजीच मुह बनाया। "कल मर्योमका ने दो बार शरार पी यो सार : टसी जेब विना दे वालो टोकरी की तरह गाली है, उगने arm, " यीन कोपेक उधार दे दो। नुम्हें यह यदीन कर लेना चाहिये कि में लोसारमा