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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/५०

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मालवा १५ "मैं क्या पूर्वी ?" वामिली ने लापरवाही से कहा परन्तु वह बिना कुछ सुने ही काँप उठा। __"वह पिछले इतवार को यहाँ नहीं थी, थी क्या ? तुम उसकी वजह से जलते हो, जलते हो न ? मूर्व बुड्ढे ! । “उसकी जैसी बहुत सी हैं ! नफरत से अपना हाथ हिलाते हुए वासिली ने कहा। "उसकी जैसी बहुत सी " सर्योमका घुर्राया, “उह तुम गँवार श्रादमी ठहरे, शहद और कोलतार मे अन्तर नहीं जानते !" _ "तुम उसे इसना ऊंचा उठाने की कोशिश क्यों कर रहे हो ? क्या यहाँ शादी कराने वाले दलाल वन कर पाये हो ? तुमने बहुत देर करदी ! यह मौका तो बहुत दिनों पहले 'प्राया था ।" वामिली ने ताना मारा । सयोमका कुछ देर तक उसकी तरफ देखता रहा और फिर उसके कन्धे पर अपना हाथ रसते हुए गहराई से वोलाः "मैं जानता हूं कि वह तुम्हारे साथ रह रही है । मैंने रफावट नहीं दाली इसकी कोई जरुरत भी नहीं थी.... .लेकिन अब यादका-तुम्हारा यह बेटा उसके चारों शोर मंडराता फिरता है । उसे एक अच्छा सा सबक दे दो! सुन रहे हो मैं क्या कह रहा है. ? प्रगर तुम नहीं मवक दोगे तो मैं दंगा... नुम भले श्रादमी हो ..सिर्फ तुम लकड़ी की तरह उस्म हो ..मैंने तुम्हारे चोच मे बाधा नहीं डाली थी... . मैं तुम्हं उसकी याद दिला देना चाहता ह" । "अच्छा तो यह मामला चल रहा है । नुम भी तो उसके पीछे पड़े रो, पयों ?" यामिली गहरी प्रागराज में बोला। "मैं भी नगर में माना होना तो सीधा उमा पास पहुंचता भार तुम मर को अपने गन्ने से उपाय कर दर फेंक देना!......लेकिन मैं टप फ्या गुष मरना है।" ____ "नो नुम क्यों इसमें अपनी नाक घुमेर रो हो ? यामिनी ने. करते हुए कहा।