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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/५३

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मालवा तो मैं फौरन चल दूंगा-एक, दो, तीन और गायव । या मुझे मौका मिल जायगा या मेरे दिमाग में कोई सनक उठ खड़ी हांगी. यह तो वहुत मामूली बात है।" _ "इससे मामूली और कोई नहीं हो सकती ! तुम विना दिमाग का स्तेमाल किए अपनी ज़िन्दगी बिता रहे हो।" सर्योझका ने वासिली की ओर मजाक से देखते हुए कहाः ___"तुम समझते हो कि तुम चालाक हो, क्यों सोचते हो न ? क्यों, वोलोस्ट पुलिस थाने में तुम कितनी बार पिटे हो ?" वासिली ने घूर कर सर्योमका की ओर देखा मगर वोला नहीं । "यह अच्छा है कि पुलिस तुम्हारी खोपड़ी में पीछे से चोट मार कर अक्ल भर देती है। उँह तुम ! तुम अपने दिमाग ले क्या कर सकते हो ? तुम सोचते हो कि यह तुम्हें कहा ले जायगा ? तुम इससे क्या सोच सकते हो ? मैं ठीक वात नहीं कह रहा हूँ ? परन्तु मैं बिना अपनी अक्ल की मदद के सोधा आगे बढ़ता हूँ और मुझे पछताना नहीं पढ़ता । और मैं शर्त बद सकता हूँ कि मैं तुम से आगे पहुँच जाऊँगा,” उस गवार ने डींग हाँकते हुए कहा। "हाँ, मैं तुम्हारी वात का यकीन करता हूँ,” वासिली ने हँसते हुए जवाव दिया-"तुम साइबेरिया तक पहुच जानोगे " । सर्योझका खिलखिला कर हँस उठा वासिली की आशा के विपरीत वोदका ने सर्योझका पर कोई प्रभाव नहीं डाला था और इससे वह क्रोधित हो उठा। वह उसे एक गिलास भर कर और दे सकता था परन्तु वह वोदका को वर्वाद नहीं करना चाहता था। दूसरी तरफ जब तक सर्योझका गम्भीर बना रहता वह उससे कोई वात नहीं निकाल सकता था परन्तु उस गँवार ने विना किसी और लालच के उस विषय को छोड़ दिया। “यह क्या वात है कि तुम मालवा के वारे में नहीं पूछते ?" उसने सवाल किया।