पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७०

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मालवा ७१ यह कि अगर वह गिरा न होता तो अपने बेटे को पकड़ लेता । झोपड़ी में सब सामान तितर बितर हो गया था । वासिली ने बोदका की बोतत्त के लिए चारों ओर देखा । उसने उसे बोरों के ऊपर पड़ा देखा और उठा लिया । चोतल को ढाट कसी हुई थी इसी से वोदका फैलने से बच गई थी । वासिली ने धीरे से दाट निकाली और बोतल का मुंह होठों से लगाकर उसने शराव पीना चाहा । परन्तु वोवल उसके दाँतों से टकराई और वोदका उसके मुंह से निकल कर उसकी दाढ़ी और सीने पर फैल गई । यासिली ने अपने कानों में गूजने की सी आवाज सुनी, उसका दिल जोर से धड़कने लगा और पीठ में असह्य पीड़ा हो उठो । "फिर भी मैं वुड्ढा हूँ ! " उसने जोर से कहा और झोपड़ी के दरवाजे पर धून में गिर पड़ा । ___ उसके सामने समुद्र फैला हुआ था । लहरें शोर मचाती हुई सेल रही थीं - हमेशा की तरह । वासिली बहुत देर तक पानी की तरफ देखता रहा और अपने बेटे के उत्सुकता से कहे हुए उन शब्दों को याद करने लगा : " काश कि यह सब धरती होशी ! काली धरती ! और अगर हम इसे जोत सकते ! " इस किसान के मन में एक तीखा विचार उठा । उसने जोर से अपना सीना रगड़ा , चारों श्रीर देवा और एक गहरी सांस ली । उसका सिर नीचे को लटक गया और उसकी पीठ मुक गई मानो उस पर नारी बोझ रखा हो । गले में सांस लटकने लगी जैसे उसका दम घुट रहा हो । उसने गा माफ करने के लिए जोर से पांसा और अपने ऊपर श्राकाश की ओर देखते हुए मॉम का निशान बनाया । उसके मन में उदास विचार उठने लगे । .. ... " " एक पदमाश औरत के लिए उसने अपनी सी को होद दिया गया जिसके नाप यह पन्द्रह वर्ष तक ईमानदारी से मेहनत करते हुए रहा था . .. और इसके लिए भगवान ने रसके पुत्र द्वारा पिटोह यरा कर उसे सजा दी थी । हो , यही पात थी । भगवान !