पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/८६

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विदूपक पीछे मुड़कर देखा और मुझे पेड़ के नीचे सपा देख प्रसरा होकर मेरी तरफ अखि मारी । हमेशा की तरह यह शानदार , भड़कीलो, दले को सी पोशाक संहने हुए था - चम्या भूरा कोट और उसी रंग की पसलून । उरके सिर पर चमकीला श्रापेरा हैट और पैरों में सुन्दर जूने थे । मैंने सोचा कि केवल एक विदूषक हो , इस प्रकार बड़े आदमियों की मी शानदार पोशाक पहन कर , जनता में एक गंवार का या व्यवहार कर सकता है । और साधारण रूप से, मुझे यह लगा कि यह श्रादमी जो यहाँ पूर्ण रुप मे अपरिचित है, तथा यहाँ जिमकी कोई बोली नहीं समझता, इस शहर और मेले के कोलाहल में अपने को इतना प्राजार केवल इसी कारण समझ रहा है क्योंकि वह एक विदूपक है । यह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के समान फुट पाथ पर चल रहा था । चलते समय वह किसी भी दूसरे प्रादमी के लिये रास्ता नहीं छोड़ता था । केवल औरतों के लिये एक तरफ हट कर रास्ता छोट देता था । और मैंने देखा कि उस मुड में से जब कोई व्यक्ति उसके कन्धे अपना फुहनी ने रगदता हुथा निफलता तो यह सामोशी से तथा नाक मी चदा कर अपने दस्ताने वाले हाथ से उस स्थान को झार देता जहाँ उस अजनयो ने टमे स्पर्श किया था । गम्भीर प्रकृति वाले रूमी तया शन्य प्यनि उसकी इस वात की तरफ कोई विशेष ध्यान दिये विना टपसे टकरा जारी । और जय चं जल्दी धनते हुए बिल्कुल एक दूसरे के सामने पहुंच जाते या रफरा जावं सय भी एक दूसरे से माफी न माँगते और न नन्नतापूर्वक अपनो टोपी या घेट रतार कर एक दूसरे के सामने मुमोदन गम्भीर प्रति वाले पक्षियों के इस प्रकार रहने में पुए भाव , भारामान्त भावना भरी र यो । कोई भी पनि, यह जान सस्ता था कि ये लोग प्राय सदी में धीर इन लोगों के पास इतना भी समय नहीं ६रि रह कर दूसरों के लिए रास्ता हो सके । परन्ट पद घिदूपफ मना पपन् मनापधान पमि के समान हम