पंद्रहवां अध्याय ब्रिटिश साम्राज्य का आधिपत्य उस पर न रहे, और वह अपनी गवर्नमेंट स्वयं निर्माण करे। गोल-सभा में आए हुए मॉडरेट नेता भी इसी किस्म की मांग के लिये जोर दे रहे हैं। "भारत के राजनीतिक दल में प्रभावशाली शक्ति बहुत कुछ है, और रहेगी। उन्होंने अपना ध्येय पूर्ण स्वाधीनता बना लिया है, और वे उस समय का स्वप्न देखने लगे हैं, जब कि समस्त भारत पूर्ण रूप से उनके हस्तगत हो जायगा, और इंगलैंड-निवासी उनके लिये साधारण योरपियन-मात्र रह जायँगे, गोरी चमड़ी भारत में आश्रित प्रजा समझी जायगी, हमारे सारे क़ों और एहसानों से इनकार कर दिया जायगा, और सफेद टोपीवाली एक सेना हिंदुओं का सामरिक आधिपत्य ग्रहण करने के लिये जर्मनी से किराए पर बुलाई जायगी। "इन सब थोथी और भयानक दलीलों की चर्चा भारत-गवर्नमेंट तथा ब्रिटिश-गवर्नमेंट के साथ देर से होती रही, पर सिवा कोरी सहानुभूति और चिकने-चुपड़े आश्वासनों के मिला कुछ नहीं । हाँ, 'पूर्ण औपनिवेशिक राज्य की ऊँची आवाज और भारत संसार की एक महान शक्ति है' की अललटप्पू ध्वनि आकाश में भर गई है। "कान्स के प्रारंभ के पाँच दिनो की स्पीचों से तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्व-शासन की योजना तत्काल ही निश्चय होनेवाली है। अब सिर्फ यह तय करना रह जाता है कि अधिकारों और सत्ता को किस प्रकार बदल लिया जाय । उसकी पद्धति और
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