सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पंद्रहवां अध्याय २०३ है कि हम अपनी आँखें खोले हुए अपने देश को मिट्टी में झोंक दें? "हमसे यह भी कहा गया है कि यदि भारत की आकांक्षाएँ पूरी करने का प्रयत्न सफल कर दिया जायगा, तो ब्रिटेन अपने राज्य-मुकुट में से एक अमूल्य रत्न खो देगा । यदि भारत को खोने का कोई सुगम मार्ग है, तो वह एक विदेशी गवर्नमेंट के शासन की कोठरी के अंदर भारतीय राष्ट्र की उन विराट और प्रलयंकरी शक्तियों को कैद करना है, जिनकी उत्ताल तरंगें भयंकर लहरें मार रही हैं। कांग्रेस को शक्तिशाली बनाने का इससे सरल उपाय नहीं है। यदि इन संकीर्ण विचारों का प्रभाव बना रहा, तो केवल ब्रिटिश साम्राज्य ही अपनी आत्महत्या नहीं करेगा, बल्कि भारतीय रियासतों और ब्रिटिश भारत के राज्य- भक्तों को भी अपनी आत्महत्या करनी पड़ेगी। 'भारत को साम्राज्य के अंतर्गत रखने का केवल एक ही मार्ग है, और वह यह है कि ब्रिटिश-जनता अपनी पार्लियामेंट के सहारे अपने सब भय और संदेह दूर कर दे, और सभ्य और एक बड़े राष्ट्र की दूरदर्शी प्रजा की हैसियत से उसके उन सद्गुणों का अनुभव करे, जिनका बीज उसी ने आरोपित किया है। और उसी भाव से प्रेरित होकर, जिससे साम्राज्य के स्तंभ केनेडा और दक्षिण आफ्रिका को शासनाधिकार दिए थे, भारत में स्थायी रूप से राष्ट्रीय तथा संयुक्त शासन की स्थापना कर भारतीयों को भी संतोषित करे।"