सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सोलहवां अध्याय २३५ से नहीं कर रहा, बल्कि अपने उन सब देशवासियों की ओर से कर रहा हूँ, जो आपसे कुछ उम्मीद किए बैठे हैं। मैं अब केवल एक शब्द कहूँगा, और बैठ जाऊँगा। सभा के संबंध में चाहे कोई कुछ कहे, समालोचक चाहे कैसी ही समालोचना करें, एक बात ऐसी है, जिस पर सब पूर्णतया सहमत हैं । वह यह कि हिज़ मेजेस्टी की सरकार ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश प्रति- निधियों ने भी जो सद्भावना प्रदर्शित की है, उसके लिये हम सब आपके कृतज्ञ हैं।" सभा को सम्मति पर प्रधान मंत्री ने एलान किया कि सभा के प्रयत्न भारत में भी जारी रहने चाहिए। केवल यह जानने के लिये नहीं कि भारतीय जनता हमारे सात प्रस्तावों का क्या जवाब देती है, बल्कि बचे हुए प्रश्नों को हल करने के लिये भी। मैं अभी नहीं कह सकता कि हम सुलह की बातचीत को किस तरह जारी रख सकेंगे, तथापि मेरा इरादा भारत के नए वाइसराय लॉर्ड विलिंगटन से,अपने मंत्रियों तथा पार्लियामेंट की अन्य पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ, मिलने का है। सर सपू ने मुझसे राजनीतिक कैदियों को छोड़ने की जो अपील की है, वह मेरे दिल को बहुत भाई है। यदि उस अपील का भारत में भी असर हुआ, और वहाँ आम शांति स्थापित हो गई, तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मेरी सरकार इस अपील का उचित जवाब देने से पीछे न हटेगी। अंत में सब प्रतिनिधियों ने मिलकर समाट् जाज, मि०