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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/३३

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चोथा अध्याय २३ सन् १८५२ में सर सी० पी० एलबर्ट ने कौंसिल में वह प्रसिद्ध बिल रक्खा, जिसका मतलब यह था कि गोरे अभियुक्तों का फ़ैसला भी काले मैजिस्ट्रेट कर सकें । ऐंग्लो इंडियन लोगों में भारीतूफान उठा । इससे अँगरेजी पढ़े-लिखे भारतीयों के मन में यह विचार पैदा हुआ कि गोरे लोग हमें तुच्छ हो समझते हैं। जगह-जगह संस्थाएँ स्थापित होने लगीं। १८८४ में, बंगाल में, जितेंद्रमोहन ठाकुर के नेतृत्व में, नेशनल लोग की स्थापना और एक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शिनी हुई । सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने उत्तर-भारत का तीसरा दौरा किया, और राष्ट्रीय एकता को आवश्यकता पर जोरदार भाषण दिए । इधर १८८५ में बंबई प्रोसडेंसी एसो- सिएशन का जन्म हुआ। श्रीकोरोज़ शाह मेहता, काशीनाथ तैलंग, दोनशा एदलजी वाचा इसके संयुक्त मंत्री हुए। परंतु इन सभी सभाओं की सीमा प्रांतों में बद्ध थी। इंडियन 'एसोसिएशन के सिवा सबका उद्देश्य भी प्रांत में ही काम करना था। पर देश-भर की समस्याओं का विचार करने की भावना देश में उत्पन्न हो गई थी। मिस्टर ह्यूम, जो कांग्रेस के पिता कहे जाते हैं, सन् ५७ का विद्रोह देख चुके थे। वह उन दिनों इटावे के कलेक्टर थे । १८७० में वह भारत सरकार के स्वराष्ट्र-सचिव रहे, फिर सन् २८७१ से १८७६ तक लगान, कृषि और व्यापार-विभाग के मिनि- स्टर रहे । इन उत्तरदायित्व-पूर्ण कार्यों में रहने पर आपको देश की परिस्थिति देखने का बारीकी से अवसर मिला। देश की जनता