चौथा अध्याय २५ अध्यक्षता न रहे, जिसमें लोगों को संकोच न हो । यह तजवीज़ नेताओं ने भी पसंद की। वायसराय ने यह कह दिया था कि उनका नाम इस संबंध में तब तक न प्रकट किया जाय, जब तक वह भारतवर्ष में रहें । यही हुआ भी। इसके बाद ह्यूम साहब इंगलैंड गए, और वहाँ लॉर्ड रिपन, जान ब्राइट एम्० पी, पार० टी० रेड एम्०, पी०, लॉर्ड डलहौसी, वैक्सटन एम्० पी०, स्लैग एम० पी० और अन्य पुरुषों से भेंट कर अपना अभिप्राय समझा दिया, जिससे कोई ग़लतफहमी न होने पावे। यह करके वह नवंबर में भारतवर्ष लौट आए। अचानक पूने में प्लेग-प्रकोप होने के कारण यह अधिवेशन बंबई में, सन् १८८५ में, श्रीउमेशचंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में, ७२ प्रतिनिधियों की उपस्थिति में हुआ। यह कांग्रेस के जन्म का संक्षिप्त इतिहास है । इसके बाद ४४ वर्ष का इतिहास तो बहुत विस्तृत है। सन् ३० को कांग्रेस से प्रथम की नीति-सन् ३० को कांग्रेस, पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, खुले षड्यंत्र की सभा थी। इसमें पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव बहु-सम्मति से पास हुश्रा । सन् १९०६ में जब कलकत्ते में दादाभाई नौरोजी के सभापतित्व में कांग्रेस हुई, तब उसमें स्पष्ट राष्ट्रीयता की गंध आने लगी थी। 'स्वराज्य' शब्द का सबसे प्रथम मंत्रोच्चार उसी समय हुआ था। इसके बाद सन् १९०८ ई० में, इलाहाबाद में, कांग्रेस का ध्येय निश्चित किया गया। उस समय साम्राज्यांतर्गत स्वराज्य की मांग
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