छठा अध्याय ६५ तो फिर मैं किन कारणों से अँगरेजी राज्य को शाप-रूप मानता हूँ ? कारण ये हैं। इस राज्य ने एक ऐसा तंत्र खड़ा कर लिया है, जिसकी वजह से मुल्क हमेशा के लिये बढ़ते हुए परिमाण में बराबर चूसा जाता रहे । इसके अलावा इस तंत्र का फौजी और दीवानी खर्च इतनी ज्यादा तबाही करनेवाला है कि मुल्क उसे कभी बरदाश्त नहीं कर सकता। नतीजा इसका यह हुआ कि हिंदोस्तान के करोड़ों बेजबान लोग आज कंगाल बन गए हैं। राजनीतिक दृष्टि से इस राज्य ने हमें लगभग गुलाम बना छोड़ा है। इसने हमारी संस्कृति और सभ्यता की बुनियाद को ही उखेड़ना शुरू कर दिया है, और लोगों से हथियार छीन लेने को सरकारी नोति ने तो हमारी मनुष्यता को ही कुचल डाला है। संस्कृति के नाश से हमारी जो आध्यात्मिक हानि हुई, उसमें हथियार न रखने के कानून के और बढ़ जाने से देश के लोगों की मनोदशा डरपोक और बेबस गुलामों की-सी हो गई है। अपने दूसरे कई भाइयों के साथ-साथ मैं भी यह आशा 'लगाए बैठा था कि आपके द्वारा प्रस्तावित गोल-सभा से ये सब शिकायतें रफा हो सकेंगी। लेकिन जब आपने मुझसे साफ-साफ कह दिया कि औपनिवेशिक स्वराज्य-डोमीनियन स्टेटस-की किसी भी योजना का समर्थन करने का आश्वासन देने के लिये आप या ब्रिटिश-मंत्रि-मंडल तैयार नहीं, तब मैंने महसूस किया कि हिंदुस्थान के समझदार लोग स्पष्ट ज्ञान-पूर्वक और अज्ञान के कारण चुप रहनेवाले करोड़ों देशवासी धुंधली-
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