00 गोल-सभा ही से देश-हित का काम करना उनके लिये नामुमकिन हो जाय। अगर कोई अभागा मंत्री इस आमदनी से हाथ धोना चाहे भी, तो वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि उस हालत में उसे शिक्षा- विभाग ही बंद कर देना पड़ता है, और मौजूदा हालत में शराब के बजाय आमदनी का कोई दूसरा ज़रिया पैदा करना उसके लिये मुमकिन नहीं। इस तरह गरीबों को इन करों के बोझ तले पिसने का ही दुःख नहीं है, वे इसलिये भी दुखी हैं कि उनकी आमदनी को बढ़ानेवाला चर्खे-जैसा गृह-उद्योग नष्ट कर दिया गया है, और इस तरह उन्हें आमदनी के इस ज़रिए से जबर्दस्ती महरूम रक्खा गया है-वंचित किया गया है। हिंदुस्थान की तबाही का यह दर्द-भरा किस्सा अधूरा ही कहा जायगा, जब तक हिंद के नाम जो कर्जा लिया गया है, उसका जिक्र इस सिलसिले में न किया जाय । लेकिन इस बारे में इन दिनों अखबारों में काफी चर्चा हो चुकी है, अतः विस्तार के साथ इसका जिक्र करना अनावश्यक है। यह कहना ही काफी होगा कि इस तरह के तमाम क़ों की पूरी-पूरी जाँच एक निष्पक्ष पंचायत द्वारा कराई जानी चाहिए । इस जाँच के फल-स्वरूप जो कर्ज अन्याय-पूर्ण और अनुचित ठहराया जायगा, उसे देने से इनकार करना ही आजाद हिंदुस्थान का सच्चा फ़र्ज़ होगा। इस तंत्र को तिलांजलि दो यह जाहिर है कि मौजूदा विदेशी सरकार दुनिया भर में ज्यादा-से-ज्यादा खर्चीली है, और इसे बनाए रखने की गरज ही