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गोस्वामी तुलसीदास

झिए। कैकेयी को समझाते समय मंथरा के मुख से भी इस उदा - सीनता की व्यंजना गोस्वामीजी ने बड़ी मार्मिकता से कराई है। राम के अभिषेक पर दुःख प्रकट करने के कारण जब मंथरा को कैकेयी बुरा-भला कहती है, तब वह कहती है-

हमहुँ कहब अब ठकुरसाहाती। नाहित मौन रहब दिन-गती।।

कोउ नृप होउ हमहि' का हानी। चेरि छांडि अब होब कि रानी।।

हिंदी कवियों में तुलसी ऐसे भावुक के सिवा इस गूढ भाव तक और किसकी पहुँच हो सकती है ? और कौन ऐसे उपयुक्त पात्र में और ऐसे उपयुक्त अवसर पर उसका विधान कर सकता है ? इस "उदासीनता" के भाव का आविष्कार उन्हीं का काम था। सूर- दास ने इसका कुछ आभास मात्र यशोदा के उस सँदेसे में दिया है जो उन्होंने कृष्ण के मथुरा चले जाने पर देवकी के पास भेजा था-

संदेसो देवकी से कहियो।

हैं। तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रहियो।।

'आश्चर्य' को लेकर कविजन 'अद्भुतरस' का विधान करते हैं जिसमें कुतूहलवर्द्धक बातें हुआ करती हैं। पर इस आश्चर्य से मिलता-जुलता एक और हलका भाव होता है जिसे, कोई और अच्छा नाम न मिलने के कारण हम, 'चकपकाहट' कह सकते हैं और आश्चर्य के संचारी के रूप में रख सकते हैं। पाश्चात्य मना- विज्ञानियों ने दोनों ( Wonder और Surprise ) में भेद किया है। आश्चर्य किसी विलक्षण बात पर होता है-ऐसी बात पर होता है जो साधारणत: नहीं हुआ करती। 'चकपकाहट' किसी ऐसी बात पर होती है जिसकी कुछ भी धारणा हमारे मन में न रही हो, और जो एकाएक हो जाय। जैसे, किसी दूर देश में रहनेवाले मित्र को सहसा अपने सामने देखकर हम 'चकपका' उठते हैं। राम का सेतु बाँधना सुन रावण चकपकाकर कहता है-