गोस्वामी तुलसीदास "राम-स्वयंवर" लिखा। इस प्रणाली का सबसे अधिक अनुसरण सूदन ने किया है। उनके 'सुजान-चरित्र' को तो हथियारों, घोड़ों. कपड़ों, सामानों की एक पुस्तकाकार नामावली समझिए । गोस्वामीजी को यह हवा बिल्कुल न लगी। इस अनर्गल विधान से दूर रहकर उन्होंने अपने गौरव और गांभीर्य की पूर्ण रक्षा की। वस्तु-प्रत्यक्षीकरण के संबंध में यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि वह काव्य का साध्य नहीं है। यदि वह साध्य या चरम लक्ष्य होता तो किसी कुरसी या गाड़ी का सूक्ष्म वर्णन भी काव्य कहला सकता । पर काव्य में तो उन्हीं वस्तुओं का वर्णन प्रयोजनीय होता है जो विभाग के अंतर्गत होती हैं अथवा उनसे संबद्ध होती हैं। अत: "काव्य एक अनुकरण कला है" यूनान के इस पुराने वाक्य को बहुत दूर तक ठीक न समझना चाहिए। कवि और चित्रकार का साध्य एक ही नहीं है। जो चित्रकार का साध्य है, वह कवि का साधन है। पर इसमें संदेह नहीं कि यह साधन सबसे आवश्यक और प्रधान है। इसके बिना काव्य का स्वरूप खड़ा ही नहीं हो सकता।
पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१६०
दिखावट