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पृष्ठ:गो-दान.djvu/११

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होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा—गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। में न जाने कब लौटूं। जरा मेरी लाठी दे दे।

धनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथकर पायी थी। बोलीअरे, कुछ रम-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी क्या है।

होरी ने अपने झरियों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा—तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे यह चिन्ता है कि अबेर हो गयी तो मालिक से भेट न होगी। असनानपूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे वीत जायगा।

'इसी से तो कहती हूँ, कुछ जलपान कर लो। और आज न जानोगे तो कौन हरज होगा। अभी तो परसों गये थे।'

'तू जो बात नहीं समझती,उसमें टाँग क्यों अड़ाती है भाई! मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख। यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है। नहीं कहीं पता न लगता कि किधर गये। गाँव में इतने आदमी तो है, किम पर बेदखली नहीं आयी, किस पर कुड़की नहीं पायी। जब दूसरे के पाँवों-तले अपनी गर्दन दबी हुई है,तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है।'

धनिया इतनी व्यवहार-कुगल न थी। उसका विचार था कि हमने ज़मींदार के खेत जोते हैं, तो वह अपना लगान ही तो लेगा। उसकी खुशामद क्यों करें,उसके तलवे क्यो सहलाये। यद्यपि अपने विवाहित जीवन के इन बीस बरमों में उसे अच्छी तरह अनुभव हो गया था कि चाहे कितनी ही कतर-ब्योंत करो, कितना ही पेट-तन काटो,चाहे एक-एक कौड़ी को दाँत से पकड़ो; मगर लगान बेबाक़ होना मुश्किल है। फिर भी वह हार न मानती थी, और इस विषय पर स्त्री-पुरुष में आये दिन संग्राम छिड़ा रहता था। उसकी छ: सन्तानों में अब केवल तीन जिन्दा है, एक लड़का गोबर कोई सोलह साल का,और दो लड़कियाँ सोना और रूपा, बारह और आठ साल की। तीन लड़के बचपन ही में मर गये। उसका मन आज भी कहता था, अगर उनकी दवादारू होती तो वे बच जाते; पर वह एक धेले की दवा भी न मँगवा सकी थी। उसकी ही उम्र अभी क्या थी। छत्तीसवाँ ही साल तो था; पर सारे बाल पक गये थे, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गयी थीं। सारी देह ढल गयी थी,वह सुन्दर गेहुआँ रंग साँवला गया था और आँखों से भी कम सूझने लगा था। पेट की चिन्ता ही के कारण तो। कभी तो जीवन का सुख न मिला। इस चिरस्थायी जीर्णावस्था ने उसके आत्म-सम्मान को उदासीनता का रूप दे दिया था। जिस गृहस्थी मे पेट की रोटियाँ भी न मिलें, उसके लिए इतनी खुशामद क्यों? इस परिस्थिति से उसका मन बराबर विद्रोह किया करता था। और दो चार धुड़कियाँ खा लेने पर ही उसे यथार्थ का ज्ञान होता था।