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पृष्ठ:गो-दान.djvu/११६

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गोदान
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भेद खुल गया,अब जेहल जाना पड़गा,हत्या अलग लगेगी। बस,कहीं भाग गया। पुनिया अलग रो रही थी,कुछ कहा न सुना,न जाने कहाँ चल दिये।

जो कुछ कसर रह गयी थी वह संध्या-समय हलके के थानेदार ने आकर पूरी कर दी। गाँव के चौकीदार ने इस घटना की रपट की,जैसा उसका कर्त्तव्य था। और थानेदार साहब भला अपने कर्तव्य से कब चूकनेवाले थे। अब गाँववालों को भी उनकी सेवा-सत्कार करके अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। दातादीन,झिंगुरीसिंह,नोखेराम,उनके चारों प्यादे,मॅगरू साह और लाला पटेश्वरी,सभी आ पहुँचे और दारोग़ाजी के सामने हाथ बांधकर खड़े हो गये। होरी की तलबी हुई। जीवन में यह पहला अवसर था कि वह दारोगा के सामने आया। ऐसा डर रहा था, जैसे फाँसी हो जायेगी। धनिया को पीटते समय उसका एक-एक अंग फड़क रहा था। दारोगा के सामने कछुए की भाँति भीतर सिमटा जाता था। दारोगा ने उसे आलोचक नेत्रों से देखा और उसके हृदय तक पहुंँच गये। आदमियों की नस पहचानने का उन्हें अच्छा अभ्यास था। कितावी मनोविज्ञान में कोरे,पर व्यावहारिक मनोविज्ञान के मर्मज थे। यक़ीन हो गया,आज अच्छे का मुँह देखकर उठे हैं। और होरी का चेहरा कहे देता था,इसे केवल एक घुड़की काफ़ी है।

दारोगा़ ने पूछा--तुझे किस पर सुबहा है?

होरी ने ज़मीन छुई और हाथ बाँधकर बोला--मेरा सुबहा किसी पर नहीं है सरकार,गाय अपनी मौत से मरी है। बुड्ढी हो गयी थी।

धनिया भी आकर पीछे खड़ी थी। तुरन्त बोली--गाय मारी है तुम्हारे भाई हीरा ने। सरकार ऐसे बौड़म नहीं हैं कि जो कुछ तुम कह दोगे,वह मान लेंगे। यहाँ जाँच-तहकिकात करने आये हैं।

दारोग़ाजी ने पूछा-- यह कौन औरत है?

{{Gap{}कई आदमियों ने दारोग़ाजी से कुछ बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए चढ़ा-ऊपरी की। एक साथ बोले और अपने मन को इस कल्पना से सन्तोष दिया कि पहले मैं बोला--होरी की घरवाली है सरकार!

'तो इसे बुलाओ,मैं पहले इसी का बयान लिखूँगा। वह कहाँ है हीरा?'

विशिष्ट जनों ने एक स्वर से कहा--वह तो आज सबेरे से कहीं चला गया है सरकार!

'मैं उसके घर की तलाशी लूंँगा।'

तलाशी! होरी की साँस तले-ऊपर होने लगी। उसके भाई हीरा के घर की तलाशी होगी और हीरा घर में नहीं है। और फिर होरी के जीते-जी,उसके देखते यह तलाशी न होने पायेगी; और धनिया से अब उसका कोई सम्बन्ध नहीं। जहाँ चाहे जाय। जब वह उसकी इज्जत बिगाड़ने पर आ गयी है,तो उसके घर में कैसे रह सकती है। जब गली-गली ठोकर खायेगी,तब पता चलेगा।

गाँव के विशिष्ट जनों ने इस महान् संकट को टालने के लिए काना-फुसी शुरू की।

दातादीन ने गंजा सिर हिलाकर कहा--यह सब कमाने के ढंग हैं। पूछो,हीरा के घर में क्या रखा है।