पृष्ठ:गो-दान.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२०
गो-दान
 

सहसा दातादीन बोले--मेरा सराप न पड़े तो मुंँह न दिखाऊँ।

नोग्वेराम ने समर्थन किया--ऐसा धन कभी फलते नहीं देखा।

पटेश्वरी ने भविष्यवाणी की--हराम की कमाई हराम में जायगी।

झिंगुरीसिंह को आज ईश्वर की न्यायपरता में सन्देह हो गया था। भगवान न जाने कहाँ हैं कि यह अन्धेर देखकर भी पापियों को दण्ड नहीं देते।

इस वक्त इन सज्जनों की तस्वीर खींचने लायक थी।


१०

हीग का कही पता न चला और दिन गुजरते जाते थे। होरी मे जहाँ तक दोड़-धूप हो सकी की;फिर हारकर बैठ रहा। खेती-बारी की भी फ़िक्र करनी थी। अकेला आदमी क्या-क्या करता। और अब अपनी खेती से ज्यादा फ़िक्र थी पुनिया की खेती की। पुनिया अब अकेली होकर और भी प्रचण्ड हो गयी थी। होरी को अव उसकी खुशामद करते बीतती थी। हीग था,तो वह पुनिया को दबाये रहता था। उसके चले जाने से अब पनिया पर कोई आँकुस न रह गया था। होरी की पटीदारी हीरा से थी। पुनिया अबला थी। उससे वह क्या तनातनी करता। और पुनिया उसके स्वभाव से परिचित थी और उसकी मज्जनता का उसे खूब दण्ड देती थी। खैरियत यही हुई कि कारकुन साहब ने पुनिया से बकाया लगान वमूल करने की कोई सख्ती न की,केवल थोड़ीसी पूजा लेकर गजी हो गये। नही,होरी अपनी वकाया के साथ उसकी वक़ाया चुकाने के लिए भी कर्ज लेने को तैयार था। सावन में धान की रोपाई की ऐसी धूम रही कि मजूर न मिले और होरी अपने खेतों में धान न रोग सका;लेकिन पुनिया के खेतों में कैसे न रोपाई होती। होरी ने पहर रात-रात तक काम करके उसके धान रोपे। अब होरी ही तो उसका रक्षक है! अगर पुनिया को कोई कप्ट हुआ,तो दुनिया उसी को तो हसेगी। नतीजा यह हुआ कि होरी को खरीफ़ की फ़मल में बहुत थोड़ा अनाज मिला,और पुनिया के बग्वार में धान रखने की जगह न रही।

होरी और धनिया में उस दिन से बराबर मनमुटाव चला आता था। गोबर से भी होरी की बोल-चाल बन्द थी। माँ-बेटे ने मिलकर जैसे उसका बहिष्कार कर दिया था। अपने घर में परदेशी बना हुआ था। दो नावों पर सवार होनेवालों की जो दुर्गति होती है,वही उसकी हो रही थी। गाँव में भी अब उसका उतना आदर न था। धनिया ने अपने साहम से स्त्रियों का ही नहीं,पुरुषों का नेतृत्व भी प्राप्त कर लिया था। महीनों तक आसपास के इलाकों में इम काण्ड की खूब चर्चा रही। यहाँ तक कि वह अलौकिक रूप तक धारण करता जाता था--'धनिया नाम है उसका जी। भवानी का इप्ट है उसे। दारोग़ाजी ने ज्योंही उसके आदमी के हाथ में हथकड़ी डाली कि धनिया ने भवानी का मुमिग्न किया। भवानी उसके सिर आ गयी। फिर तो उसमें इतनी शक्ति आ गयी कि उसने एक झटके में पति की हथकड़ी तोड़ डाली और दारोगा की मूंँछे पकड़कर उखाड़ लीं,फिर उसकी