१२ | गोदान |
विचलित कर दिया। भोला के समीप जाकर बोला––राम-राम भोला भाई, कहो क्या रंग-ढंग है। सुना अबकी मेले से नयी गायें लाये हो।
भोला ने रुखाई से जवाब दिया। होरी के मन की बात उसने ताड़ ली थी––हाँ, दो बछिये और दो गायें लाया। पहलेवाली गायें सब सूख गयी थीं। बन्धी पर दूध न पहुँचे तो गुजर कैसे हो।
होरी ने आनेवाली गाय के पुट्टे पर हाथ रखकर कहा––दुधार तो मालूम होती है। कितने में ली?
भोला ने शान जमायी––अबकी बाजार बड़ा तेज़ रहा महतो, इसके अस्सी रुपए देने पड़े। आंखे निकल गयीं। तीस-तीस रुपए तो दोनों कलोरों के दिये। तिस पर गाहक रुपए का आठ सेर दूध माँगता है।
'बड़ा भारी कलेजा है तुम लोगों का भाई, लेकिन फिर लाये भी तो वह माल कि यहाँ दस-पाँच गाँवों में तो किसी के पास निकलेगी नहीं।'
भोला पर नशा चढ़ने लगा। बोला––राय साहब इसके सौ रुपए देते थे। दोनों कलोरों के पचास-पचास झपाए, लेकिन हमने न दियें। भगवान ने चाहा, तो सौ रुपए इसी व्यान में पीट लूँगा।
'इसमें क्या सन्देह है भाई! मालिक क्या खाके लेगे। नजराने मे मिल जाय, तो भले ले लें। यह तुम्ही लोगों का गुर्दा है कि अंजुली-भर रुपए तकदीर के भरोसे गिन देते हो। यही जी चाहता है कि इसके दरसन करता रहूँ। धन्य है तुम्हारा जीवन कि गउओं की इतनी सेवा करते हो। हमें तो गाय का गोबर भी मयस्सर नही। गिरस्त के घर मे एक गाय भी न हो, तो कितनी लज्जा की बात है। माल-के-माल बीत जाते है, गोरस के दरसन नहीं होते। घरवाली बार-बार कहती है, भोला भैया से क्यों नहीं कहते। मैं कह देता हूँ, कभी मिलेगे तो कहूँगा। तुम्हारे सुभाव से बड़ी परसन रहती है। कहती है, ऐसा मर्द ही नहीं देखा कि जब बातें करेगे, नीची आँखें करके, कभी सिर नहीं उठाते।'
भोला पर जो नशा चढ़ रहा था, उसे इस भरपूर प्याले ने और गहरा कर दिया। बोला––भला आदमी वही है, जो दूसरों की बहू-बेटी को अपनी बहू-बेटी समझे। जो दुष्ट किसी मेहरिया की ओर ताके, उसे गोली मार देना चाहिए।
यह तुमने लाख रुपए की बात कह दी भाई। बस सज्जन वही, जो दूसरों की आबरू को अपनी आबरू समझे।'
'जिस तरह मर्द के मर जाने से औरत अनाथ हो जाती है, उसी तरह औरत के मर जाने से मर्द के हाथ-पाँव कट जाते हैं। मेरा तो घर उजड़ गया महतो, कोई एक लोटा पानी देनेवाला भी नहीं।'
गत वर्ष भोला की स्त्री लू लग जाने से मर गयी थी। यह होरी जानता था, लेकिन पचास बरस का खंखड़ भोला भीतर से इतना स्निग्ध है, वह न जानता था। स्त्री की लालसा उसकी आँखों में सजल हो गयी थी। होरी को आसन मिल गया। उसकी व्यावहारिक कृषक-बुद्धि सजग हो गयी।