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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१५९

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गो-दान
 

पटेश्वरी बोले––यह उसके सीधेपन का फल है। तुम्हारे रुपये उस पर आते हैं, तो जाकर दिवानी में दावा करो, डिग्री कराओ। बैल खोल लाने का तुम्हें क्या अख्तियार है? अभी फ़ौजदारी में दावा कर दे तो बँधे-बँधे फिरो।

भोला ने दबकर कहा––तो लाला साहब, हम कुछ जबरदस्ती थोड़े ही खोल लाये। होरी ने खुद दिये।

पटेश्वरी ने शोभा से कहा––तुम बैलों को लौटा दो शोभा। किसान अपने बैल खुशी से देगा, तो इन्हें हल में जोतेगा।

भोला बैलों के सामने खड़ा हो गया हमारे रुपए दिलवा दो हमें बैलों को लेकर क्या करना है।

'हम बैल लिये जाते हैं,अपने रुपए के लिए दावा करो और नहीं तो मारकर गिरा दिये जाओगे। रुपए दिये थे नगद तुमने? एक कुलच्छिनी गाय बेचारे के सिर मढ़ दी और अब उसके बैल खोले लिये जाते हो।'

भोला बैलों के सामने से न हटा। खड़ा रहा गुमसुम, दृढ़, मानो मरकर ही हटेगा। पटवारी से दलील करके वह कैसे पेश पाता?

दातादीन ने एक क़दम आगे बढ़कर अपनी झुकी कमर को सीधा करके ललकारा तुम सब खड़े ताकते क्या हो, मार के भगा दो इसको। हमारे गाँव से बैल खोल ले जाएगा।

बंशी बलिष्ठ युवक था। उसने भोला को ज़ोर से धक्का दिया। भोला सँभल न सका, गिर पड़ा। उठना चाहता था कि वंशी ने फिर एक घूँसा दिया।

होरी दौड़ता हुआ आ रहा था। भोला ने उसकी ओर दम क़दम बढ़कर पूछा––ईमान से कहना होरी महतो, मैंने बैल ज़बरदस्ती खोल लिये?

दातादीन ने इसका भावार्थ किया––यह कहते हैं कि होरी ने अपने खुशी से बैल मुझे दे दिये। हमी को उल्लू बनाते हैं।

होरी ने सकुचाते हुए कहा––यह मुझसे कहने लगे या तो झुनिया को घर से निकाल दो, या मेरे रुपए दो, नहीं तो मैं बैल खोल ले जाऊँगा। मैंने कहा, मैं बहू को तो न निकालूँगा, न मेरे पास रुपए हैं; अगर तुम्हारा धरम कहे, तो बैल खोल लो। बस, मैंने इनके धरम पर छोड़ दिया और इन्होंने बैल खोल लिये।

पटेश्वरी ने मुँह लटकाकर कहा––जब तुमने धरम पर छोड़ दिया, तब काहे की जबरदस्ती। उसके धरम ने कहा, लिये जाता है। जाओ भैया, बैल तुम्हारे हैं।

दातादीन ने समर्थन किया--हां, जब धरम की बात आ गयी, तो कोई क्या कहे। सब के सब होरी को तिरस्कार की आँखों से देखते, परास्त होकर लौट पड़े, और विजयी भोला शान से गर्दन उठाये बैलों को ले चला।


१५

मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है! और जिये भी तो वह कोई सुखी जीवन