गोमती को विश्वास न आया,बोली--झूठे हो। तुम्हें पन्द्रह सौ कहाँ मिल जाते हैं। हाँ,पन्द्रह रुपए कहो,मान लेती हूँ।
'नहीं-नहीं,तुम्हारे सिर की क़सम,पन्द्रह सौ मारे। अभी राय साहब आये थे। सौ ग्राहकों का चन्दा अपनी तरफ़ से देने का वचन दे गये हैं।'
गोमती का चेहरा उतर गया-- तो मिल चुके?
'नहीं,राय साहब वादे के पक्के हैं।'
'मैंने किसी ताल्लुकेदार को वादे का पक्का देखा ही नहीं। दादा एक ताल्लुकेदार के नौकर थे। साल-साल भर तलब नहीं मिलती थी। उसे छोड़कर दूसरे की नौकरी की। उसने दो साल तक एक पाई न दी। एक बार दादा गरम पड़े,तो मारकर भगा दिया। इनके वादों का कोई क़रार नहीं।'
'मैं आज ही बिल भेजता हूँ।'
'भेजा करो। कह देंगे,कल आना। कल अपने इलाके पर चले जायेंगे। तीन महीने में लौटेंगे।'
ओंकारनाथ संशय में पड़ गये। ठीक तो है,कहीं राय साहब पीछे से मुकर गये,तो वह क्या कर लेंगे। फिर भी दिल मजबूत करके कहा--ऐसा नहीं हो सकता। कम-से-कम राय साहब को मैं इतना धोखेबाज़ नहीं समझता। मेरा उनके यहाँ कुछ बाक़ी नहीं है।
गोमती ने उसी सन्देह के भाव से कहा--इसी से तो मैं तुम्हें वुद्ध कहती हूँ। ज़रा किसी ने सहानुभूति दिखायी और तुम फूल उठे। ये मोटे रईस हैं। इनके पेट में ऐसे कितने वादे हज़म हो सकते हैं। जितने वादे करते हैं,अगर सब पूरा करने लगें,तो भीख मांँगने की नौबत आ जाय। मेरे गाँव के ठाकुर साहव तो दो-दो,तीन-तीन साल-तक बनियों का हिसाब न करते थे। नौकरों का हिसाब तो नाम के लिए देते थे। साल-भर काम लिया,जब नौकर ने वेतन माँगा,मारकर निकाल दिया। कई बार इसी नादिहेन्दी में स्कूल से उनके लड़कों के नाम कट गये। आखिर उन्होंने लड़कों को घर बुला लिया। एक बार रेल का टिकट उधार माँगा था। यह राय साहब भी तो उन्हीं के भाईबन्द हैं। चलो भोजन करो और चक्की पीसो,जो तुम्हारे भाग्य में लिखा है। यह समझ लो कि ये बड़े आदमी तुम्हें फटकारते रहें,वही अच्छा है। यह तुम्हें एक पैसा देंगे,तो उसका चौगुना अपने असामियों से वसूल कर लेंगे। अभी उनके विषय में जो कुछ चाहते हो,लिखते हो। तब तो ठकुरसोहाती ही कहनी पड़ेगी।
पण्डित जी भोजन कर रहे थे;पर कौर मुंँह में फंँसा हुआ जान पड़ता था। आखिर बिना दिल का बोझ हलका किये भोजन करना कठिन हो गया। बोले--अगर रुपए न दिये,तो ऐसी खबर लूंँगा कि याद करेंगे। उनकी चोटी मेरे हाथ में है। गांँव के लोग झूठी खबर नहीं दे सकते। सच्ची खबर देते तो उनकी जान निकलती है,झूठी खबर क्या देंगे! राय साहब के खिलाफ़ एक रिपोर्ट मेरे पास आयी है। छाप दूंँ,बचा को घर से निकलना मुश्किल हो जाय। मुझे यह खैरात नहीं दे रहे हैं,बड़े दबसट