बालकों से मूंँछे उखड़वाकर भी हँसते हैं,उन्होंने भी इस फटकार को हँसी में लिया और विनोद-भाव से बोले--लखनऊ की हवा खा के तू बड़ा चंट हो गया है गोबर! ला,क्या कमा के लाया है,कुछ निकाल? सच कहता हूँ गोबर तुम्हारी बहुत याद आती थी। अब तो रहोगे कुछ दिन?
'हाँ, अभी तो रहूँगा कुछ दिन। उन पंचों पर दावा करना है,जिन्होंने डाँड़ के बहाने मेरे डेढ़ सौ रुपए हजम किये हैं। देखू,कौन मेरा हुक्का-पानी बन्द करता है। और कैसे विरादरी मुझे जात बाहर करती है।'
यह धमकी देकर वह आगे बढ़ा। उसकी हेकड़ी ने उसके युवक भक्तों को रोब में डाल दिया था।
एक ने कहा--कर दो नालिस गोबर भैया! बुड्ढा काला साँप है--जिसके काटे का मन्तर नहीं। तुमने अच्छी डाँट बताई। पटवारी के कान भी जरा गरमा दो। बड़ा मुतफन्नी है दादा! बाप-बेटे में आग लगा दे,भाई-भाई में आग लगा दे। कारिन्दे से मिलकर असामियों का गला काटता है। अपने खेत पीछे जोतो, पहले उसके खेत जोत दो। अपनी सिंचाई पीछे करो,पहले उसकी सिंचाई कर दो।
गोबर ने मूंँछों पर ताव देकर कहा---मुझसे क्या कहते हो भाई,साल भर में भूल थोड़े ही गया। यहाँ मुझे रहना ही नहीं है,नहीं एक-एक को नचाकर छोड़ना। अबकी होली धूम-धाम से मनाओ और होली का स्वाँग बनाकर इन सबों को खूब भिंगो-भिंगोकर लगाओ।
होली का प्रोग्राम वनने लगा। खूब भंग घुटे, दूधिया भी,नमकीन भी,और रंगों के साथ कालिख भी बने और मुखियों के मुंँह पर कालिख ही पोती जाय। होली में कोई बोल ही क्या सकता है! फिर स्वाँग निकले और पंचों की भद्द उड़ाई जाय। रुपए-पैसे की कोई चिंता नहीं। गोबर भाई कमाकर आये हैं।
भोजन करके गोबर भोला से मिलने चला। जब तक अपनी जोड़ी लाकर अपने द्वार पर बाँध न दे,उसे चैन नहीं। वह लड़ने-मरने को तैयार था।
होरी ने कातर स्वर में कहा--राढ़ मत बढ़ाओ बेटा, भोला गोई ले गये,भगवान उनका भला करे;लेकिन उनके रुपए तो .... थे।
गोबर ने उत्तेजित होकर कहा--दादा, तुम बीच में न बोलो। उनकी गाय पचास की थी। हमारी गोई डेढ़ सौ में आयी थी। तीन साल हमने जोती। फिर भी सौ की थी ही। वह अपने रुपये के लिए दावा करते,डिग्री कराते,या जो चाहते कहते,हमारे द्वार से जोड़ी क्यों खोल ले गये? और तुम्हें क्या कहूँ। इधर गोई खो बैठे,उधर डेढ़ सौ रुपए डाँड़ के भरे। यह है गऊ होने का फल। मेरे सामने जोड़ी खोल ले जाते,तो देखता। तीनों को यहाँ जमीन पर सुला देता। और पंचों से तो बात तक न करता। देखता,कौन मुझे बिरादरी से अलग करता है;लेकिन तुम बैठे ताकते रहे।
होरी ने अपराधी की भाँति सिर झुका लिया;लेकिन धनिया यह अनीत कैसे देख