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गो-दान
 


कि दातादीन और झिंगुरीसिंह भी उनकी खुशामद करते थे, केवल पटेश्वरी उनसे ताल ठोकने को हमेशा तैयार रहते थे। नोखेराम को अगर यह जोम था कि हम ब्राह्मण हैं और कायस्थों को उँगली पर नचाते हैं,तो पटेश्वरी को भी घमण्ड था कि हम कायस्थ है,कलम के बादशाह,इस मैदान में कोई हमसे क्या बाजी ले जायगा। फिर वह जमींदार के नौकर नहीं,सरकार के नौकर हैं,जिसके राज में सूरज कभी नहीं डूबता। नोखेराम अगर एकादशी को व्रत रखते हैं और पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं तो पटेश्वरी हर पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा सुनेंगे और दस ब्राह्मणों को भोजन करायेंगे। जबसे उनका जेठा लड़का सजावल हो गया था,नोखेराम इस ताक में रहते थे कि उनका लड़का किसी तरह दसवाँ पास कर ले,तो उसे भी कहीं नकलनवीसी दिला दें। इसलिए हुक्काम के पास फसली सौगातें लेकर बराबर सलामी करते रहते थे। एक और बात में पटेश्वरी उनसे बढ़े हुए थे। लोगों का खयाल था कि वह अपनी विधवा कहारिन को रखे हुए हैं। अब नोखेराम को भी अपनी शान में यह कसर पूरी करने का अवसर मिलता हुआ जान पड़ा।

भोला को ढाढ़स देते हुए बोले-तुम यहाँ आराम से रहो भोला,किसी बात का खटका नहीं। जिस चीज की जरूरत हो, हमसे आकर कहो। तुम्हारी घरवाली है,उसके लिए भी कोई न कोई काम निकल आयेगा। वखारों में अनाज रखना,निकालना, पछोरना,फटकना क्या थोड़ा काम है?

भोला ने अरज की--सरकार,एक बार कामता को बुलाकर पूछ लो,क्या बाप के साथ बेटे का यही सलूक होना चाहिए। घर हमने बनवाया,गाय-भैंसे हमने लीं। अब उसने सब कुछ हथिया लिया और हमें निकाल बाहर किया। यह अन्याय नहीं तो क्या है। हमारे मालिक तो तुम्ही हो। तुम्हारे दरबार से इसका फैसला होना चाहिए।

नोखेराम ने समझाया-भोला, तुम उससे लड़कर पेश न पाओगे; उसने जैसा किया है,उसकी सजा उसे भगवान देंगे। बेईमानी करके कोई आज तक फलीभूत हुआ है? संसार में अन्याय न होता,तो इसे नरक क्यों कहा जाता। यहाँ न्याय और धर्म को कौन पूछता है? भगवान सब देखते हैं। संसार का रत्ती-रत्ती हाल जानते हैं। तुम्हारे मन में इस समय क्या बात है,यह उनसे क्या छिपा है? इसी से तो अन्तरजामी कहलाते हैं। उनसे बचकर कोई कहाँ जायगा? तुम चुप होके बैठो। भगवान की इच्छा हुई,तो यहाँ तुम उससे बुरे न रहोगे।

यहाँ से उठकर भोला ने होरी के पास जाकर अपना दुखड़ा रोया। होरी ने अपनी बीती सुनायी--लड़कों की आजकल कुछ न पूछो भोला भाई। मर-मरकर पालो;जवान हों,तो दुसमन हो जायें। मेरे ही गोबर को देखो। माँ से लड़कर गया,और सालों हो गये,न चिट्ठी,न पत्तर। उसके लेखे तो माँ-बाप मर गये। बिटिया का ब्याह सिर पर है;लेकिन उससे कोई मतलब नहीं। खेत रेहन रखकर दो सौ रुपए लिये हैं। इज्जतआबरू का निबाह तो करना ही होगा।

कामता ने बाप को निकाल वाहर तो किया;लेकिन अब उसे मालूम होने लगा