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पृष्ठ:गो-दान.djvu/३१४

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३१६ गोदान

मुझे कह लेने दो। मैं क्यों अस्थिर और चंचल हूँ; इसलिए कि मुझे वह प्रेम नहीं मिला, जो मुझे स्थिर और अचंचल बनाता; अगर तुमने मेरे सामने उसी तरह आत्म-समर्पण किया होता, जैसे मैंने तुम्हारे सामने किया है, तो तुम आज मुझ पर यह आक्षेप न रखते।

मेहता ने मालती के मान का आनन्द उठाते हुए कहा--तुमने मेरी परीक्षा कभी नही की ? सच कहती हो ?

'कभी नहीं।'

'तो तुमने ग़लती की।'

'मैं इसकी परवाह नहीं करती।'

'भावुकता में न आओ मालती ! प्रेम देने के पहले हम सब परीक्षा करते हैं और तुमने की, चाहे अप्रत्यक्ष रूप से ही की हो। मैं आज तुमसे स्पष्ट कहता हूँ कि पहले मैंने तुम्हें उसी तरह देखा, जैसे रोज ही हजारों देवियों को देखा करता हूँ, केवल विनोद के भाव से ; अगर मैं ग़लती नहीं करता, तो तुमने भी मुझे मनोरंजन के लिए एक नया खिलौना समझा।'

मालती ने टोका --ग़लत कहते हो। मैंने कभी तुम्हें इस नजर से नहीं देखा। मैंने पहले ही दिन तुम्हें अपना देव बनाकर अपने हृदय . . .

मेहता बात काटकर बोले--फिर वही भावुकता। मुझे ऐसे महत्त्व के विषय मे भावुकता पसन्द नहीं; अगर तुमने पहले ही दिन में मुझे इम कृपा के योग्य समझा, तो इसका यही कारण हो सकता है, कि मैं रूप भरने में तुममे ज्यादा कुशल हूँ, वरना जहाँ तक मैंने नारियों का स्वभाव देखा है, वह प्रेम के विपय में काफी छान-बीन करती हैं। पहले भी तो स्वयंवर में पुरुषों की परीक्षा होती थी? वह मनोवत्ति अब भी मौजूद है, चाहे उसका रूप कुछ बदल गया हो। मैंने तब से बराबर यही कोशिश की है कि अपने को सम्पूर्ण रूप मे तुम्हारे मामने रख दूंँ और उसके साथ ही तुम्हारी आत्मा तक भी पहुँच जाऊंँ। और मैं ज्यों-ज्यों तुम्हारे अन्तस्तल की गहराई में उतरा है, मुझे रत्न ही मिले हैं। मैं विनोद के लिए आया और आज उपासक बना हुआ हूँ। तुमने मेरे भीतर क्या पाया यह मुझे मालूम नहीं।

नदी का दूसरा किनारा आ गया। दोनों उतरकर उसी बालू के फर्श पर जा बैठे और मेहना फिर उसी प्रवाह में बोले--और आज मैं यहाँ वही पूछने के लिए तुम्हें लाया हूँ?

मालती ने काँपते हुए स्वर में कहा--क्या अभी तुम्हें मुझसे यह पूछने की ज़रूरत बाकी है ?

'हाँ, इसलिए कि मैं आज तुम्हें अपना वह रूप दिखाऊँगा, जो शायद अभी तक तुमने नहीं देखा और जिसे मैंने भी छिपाया है। अच्छा, मान लो, मैं तुमसे विवाह करके कल तुमसे बेवफाई करूँ तो तुम मुझे क्या सज़ा दोगी?'

मालती ने उनकी ओर चकित होकर देखा। इसका आशय उसकी समझ में न आया।