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गोदान ३२१

राय साहब ने सीधे मर्म पर आघात किया--मैं जानना चाहता हूँ, वह कौन लड़की है ?

रुद्रपाल ने अचल भाव से कहा--अगर आप इतने उत्सुक हैं, तो मुनिए। वह मालती देवी की बहन सरोज है।

राय साहब आहत होकर गिर पड़े--अच्छा वह !

'आपने तो सरोज को देखा होगा?'

'खूब देखा है। तुमने राजकुमारी को देखा है या नहीं ?'

'जी हाँ, खूब देखा है।'

'फिर भी....'

'मैं रूप को कोई चीज़ नहीं समझता।'

'तुम्हारी अक्ल पर मुझे अफ़सोस आता है। मालती को जानते हो कैसी औरत है ? उसकी बहन क्या कुछ और होगी।'

रुद्रपाल ने तेवरी चढ़ाकर कहा--मैं इस विषय में आपसे और कुछ नहीं कहना चाहता; मगर मेरी शादी होगी, तो मरोज से।

'मेरे जीते जी कभी नहीं हो सकती।'

'तो आपके बाद होगी।'

'अच्छा, तुम्हारे यह इरादे हैं !'

और राय साहब की आँखें सजल हो गयीं। जैसे सारा जीवन उजड़ गया हो। मिनिस्ट्री और इलाक़ा और पदवी, सब जैसे वासी फलों की तरह नीरस, निरानन्द हो गये हों। जीवन की सारी साधना व्यर्थ हो गयी। उनकी स्त्री का जब देहान्त हुआ था, तो उनकी उम्र छत्तीस साल से ज्यादा न थी। वह विवाह कर मकते थे, और भोग-विलास का आनन्द उठा सकते थे। सभी उनसे विवाह करने के लिए आग्रह कर रहे थे; मगर उन्होंने इन बालकों का मुँह देखा और विधुर जीवन की साधना स्वीकार कर ली। इन्हीं लड़कों पर अपने जीवन का सारा भोग-विलास न्योछावर कर दिया। आज तक अपने हृदय का सारा स्नेह इन्हीं लड़कों को देते चले आये हैं, और आज यह लड़का इतनी निष्ठुरता से बातें कर रहा है, मानो उनसे कोई नाता नहीं, फिर वह क्यों जायदाद और सम्मान और अधिकार के लिए जान दें। इन्हीं लड़कों ही के लिए तो वह सब कुछ कर रहे थे, जब लड़कों को उनका ज़रा भी लिहाज़ नहीं, तो वह क्यों यह तपस्या करें। उन्हें कौन संसार में बहुत दिन रहना है। उन्हें भी आराम से पड़े रहना आता है। उनके और हजारों भाई मूंँछों पर ताव देकर जीवन का भोग करते हैं और मस्त घूमते हैं। फिर वह भी क्यों न भोग-विलास में पड़े रहें। उन्हें इस वक्त याद न रहा कि वह जो तपस्या कर रहे हैं, वह लड़कों के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए; केवल यश के लिए नहीं, बल्कि इसीलिए कि वह कर्मशील हैं और उन्हें जीवित रहने के लिए इसकी ज़रूरत है। वह विलासी और अकर्मण्य बनकर अपनी आत्मा को सन्तुष्ट नहीं रख सकते। उन्हें मालूम नहीं, कि कुछ लोगों की प्रकृति ही ऐसी होती है कि विलास