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३३० गोदान

उड़ाया। यह कोई नया आविष्कार नहीं है कि संकटों में ही हमारी आत्मा को जागृति मिलती है। बुढ़ापे में कौन अपनी जवानी की भूलों पर दुखी नहीं होता। काश, वह समय ज्ञान या शक्ति के संचय में लगाया होता, मुकृतियों का कोप भर लिया होता, तो आज चित्त को कितनी शान्ति मिलती। वहीं उन्हें इसका वेदनामय अनुभव हुआ कि संसार में कोई अपना नहीं, कोई उनकी मौत पर आँसू बहानेवाला नहीं। उन्हें रह-रहकर जीवन की एक पुरानी घटना याद आती थी। बसरे के एक गांँव में जब वह कैम्प में मलेरिया से ग्रस्त पड़े थे, एक ग्रामीण बाला ने उनकी तीमारदारी कितने आत्मसमर्पण से की थी। अच्छे हो जाने पर जब उन्होंने रुपए और आभूषणों से उमके एहसानों का बदला देना चाहा था, तो उमने किस तरह आँखों में आँसू भरकर सिर नीचा कर लिया था और उन उपहारों को लेने से इनकार कर दिया था। इन नों की सुश्रूषा में नियम है, व्यवस्था है, सच्चाई है, मगर वह प्रेम कहाँ, वह तन्मयता कहाँ जो उस वाला की अभ्यासहीन, अल्हड़ सेवाओं में थी? वह अनुराग-मूर्ति कब की उनके दिल मे मिट चुकी थी। वह उसमे फिर आने का वादा करके कभी उसके पास न गये। विलास के उन्माद में कभी उसकी याद ही न आयी। आयी भी तो उसमें केवल दया थी, प्रेम न था। मालूम नही, उस बाला पर क्या गुज़री? मगर आजकल उसकी वह आतुर, नम्र, शान्त, सरल मुद्रा बराबर उनकी आँग्वों के सामने फिरा करती थी। काश उससे विवाह कर लिया होता तो आज जीवन में कितना रम होता। और उसके प्रति अन्याय के दुःख ने उस सम्पूर्ण वर्ग को उनकी सेवा और सहानुभूति का पात्र बना दिया। जब तक नदी बाढ़ पर थी उसके गंदले, तेज, फेनिल प्रवाह में प्रकाश की किरणे विखरकर रह जाती थी। अब प्रवाह स्थिर और शान्त हो गया था और रश्मियाँ उसकी तह तक पहुंँच रही थीं।

मिर्जा साहब वसन्त की इम शीतल सन्ध्या में अपने झोंपड़े के बरामदे में दो वारांगनाओं के माथ बैठे कुछ बातचीत कर रहे थे कि मिस्टर मेहता पहुँचे। मिर्जा़ ने बड़े तपाक से हाथ मिलाया और बोले--मैं तो आपकी खातिरदारी का सामान लिये आपकी राह देख रहा हूँ।

दोनों सुन्दरियाँ मुस्करायी। मेहता कट गये।

मिर्जा़ ने दोनों औरतों को वहांँ से चले जाने का सकेत किया और मेहता को मसनद पर बैठाते हुए बोले--मैं तो खुद आपके पास आनेवाला था। मुझे ऐसा मालूम हो रहा है कि मैं जो काम करने जा रहा हूँ, वह आपकी मदद के बगैर पूरा न होगा। आप सिर्फ मेरी पीठ पर हाथ रख दीजिए और ललकारते जाइये--हाँ मिर्जा़, बढ़े चल पठे।

मेहता ने हँसकर कहा--आप जिस काम में हाथ लगायेंगे, उसमें हम-जैसे किताबी कीड़ों की मदद की ज़रूरत न होगी। आपकी उम्र मुझसे ज्यादा है, दुनिया भी आपने खूब देखी है और छोटे-से-छोटे आदमियों पर अपना असर डाल सकने की जो शक्ति आप में है, वह मुझमें होती, तो मैंने खुदा जाने क्या किया होता।

मिर्जा़ साहब ने थोड़े-से शब्दों में अपनी नयी स्कीम उनसे बयान की। उनकी धारणा