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पृष्ठ:गो-दान.djvu/३३०

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३३२ गोदान

का व्रत न ले ले? दौलतवाले और जिस तरह चाहें अपनी दौलत उड़ायें, मिर्जा़जी को ग़म नहीं। शराब में डूब जायें, कारों की माला गले में डाल लें, क़िले बनवायें,धर्मशालायें और मसजि़दें खड़ी करें, उन्हें कोई परवाह नहीं। अबलाओं की ज़िन्दगी न खराब करें। यह मिर्जा़जी नहीं देख सकते। वह रूप के बाजार को ऐसा खाली कर देंगे कि दौलतवालों की अफ़ियों पर कोई थूकनेवाला भी न मिले। क्या जिन दिनों शराब को दूकानों की पिकेटिंग होती थी, अच्छे-अच्छे शराबी पानी पी-पीकर दिल की आग नहीं बुझाते थे?

मेहता ने मिर्जा़ की बेवकूफी पर हँसकर कहा--आपको मालूम होना चाहिए कि दुनिया में ऐसे मुल्क भी हैं जहाँ वेश्याएँ नहीं हैं। मगर अमीरों की दौलत वहाँ भी दिलचस्पियों के सामान पैदा कर लेती है।

मिर्जा़जी भी मेहता की जड़ता पर हँसे--जानता हूँ मेहरबान, जानता हूँ। आपकी दुआ से दुनिया देख चुका हूँ; मगर यह हिन्दुस्तान है, यूरोप नहीं है।

'इंसान का स्वभाव सारी दुनिया में एक-सा है।'

'मगर यह भी मालूम रहे कि हरएक क़ौम में एक ऐसी चीज़ होती है, जिसे उसकी आत्मा कह सकते हैं। असमत (सतीत्व) हिन्दुस्तानी तहज़ीब की आत्मा है।'

'अपने मुँह मियाँ-मिठू बन लीजिए।'

'दौलत की आप इतनी बुराई करते हैं, फिर भी खन्ना की हिमायत करते नहीं थकते। न कहिएगा।'

मेहता का तेज विदा हो गया। नम्र भाव से बोले--मैंने खन्ना की हिमायत उस वक्त की है, जब वह दौलन के पंजे से छूट गये हैं, और आजकल उसकी हालत आप देखें, तो आपको दया आयेगी। और मैं क्या हिमायत करूँगा, जिसे अपनी किताबों और विद्यालय से छुट्टी नही; ज्यादा-से-ज्यादा मूखी हमदर्दी ही तो कर सकता हूँ। हिमायत की है मिस मालती ने कि खन्ना को बचा लिया। इन्सान के दिल की गहराइयों में त्याग और कुबानी की कितनी ताकत छिपी होती है, इसका मुझे अब तक तजरवा न हुआ था। आप भी एक दिन खन्ना से मिल आइए। फूला न समाइएगा। इस वक्त उसे जिस चीज़ की सबसे ज्यादा ज़रूरत है, वह हमदर्दी है।

मिर्जा़ ने जैसे अपनी इच्छा के विरुद्ध कहा--आप कहते हैं, तो जाऊँगा। आपके साथ जहन्नुम में जाने में भी मुझे उज्र नहीं; मगर मिस मालती से तो आपकी शादी होनेवाली थी। बड़ी गर्म खवर थी।

मेहता ने झेंपते हुए कहा--तपस्या कर रहा हूँ। देखिए कब वरदान मिले।

‘अजी वह तो आप पर मरती थी।'

'मुझे भी यही वहम हुआ था; मगर जब मैंने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ना चाहा,तो देखा वह आसमान में जा बैठी है। उस ऊँचाई तक तो क्या मैं पहुँचूंँगा, आरजू- मिन्नत कर रहा हूँ कि नीचे आ जाय। आजकल तो वह मुझसे बोलती भी नहीं।'

यह कहते हुए मेहता ज़ोर से रोती हुई हँसी हँसे और उठ खड़े हुए।