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३३८ गोदान

मालती ने घबराकर कहा--ज्वर आ गया! तो मेरे पास क्यों नहीं लायी? चल देखूँ।

बालक खटोले पर ज्वर में अचेत पड़ा था। खपरैल की उस कोठरी में इतनी सील, इतना अँधेरा, और इस ठण्ड के दिनों में भी इतनी मच्छड़ कि मालती एक मिनट भी वहाँ न ठहर सकी; तुरन्त आकर थर्मामीटर लिया और फिर जाकर देखा, एक सौ चार था! मालती को भय हुआ, कहीं चेचक न हो। बच्चे को अभी तक टीका नहीं लगा था। और अगर इस सीली कोठरी में रहा, तो भय था, कहीं ज्वर और न बढ़ जाय।

सहसा बालक ने आँखें खोल दी और मालती को खड़ी पाकर करुण नेत्रों से उसकी ओर देखा और उसकी गोद के लिए हाथ फैलाये। मालती ने उसे गोद में उठा लिया और थपकियाँ देने लगी।

बालक मालती की गोद में आकर जैसे किसी बड़े सुख का अनुभव करने लगा। अपनी जलती हुई उँगलियों से उसके गले की मोतियों की माला पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। मालती ने नेकलेस उतारकर उसके गले में डाल दी। बालक की स्वार्थी प्रकृति इस दशा में भी सजग थी। नेकलेस पाकर अब उमे मालती की गोद में रहने की कोई ज़रूरत न रही। यहाँ उमके छिन जाने का भय था। झुनिया की गोद इस समय ज्यादा सुरक्षित थी।

मालती ने खिले हुए मन से कहा--बड़ा चालाक है। चीज़ लेकर कैमा भागा!

झुनिया ने कहा--दे दो बेटा, मेम साहब का है।

बालक ने हार को दोनों हाथों से पकड़ लिया और माँ की ओर रोप से देखा।

मालती बोली--तुम पहने रहो वचा, मैं माँगती नहीं हूँ।

उसी वक्त बँगले में आकर उसने अपना बैठक का कमरा खाली कर दिया और उसी वक्त झुनिया उस नये कमरे में डट गयी।

मंगल ने उस स्वर्ग को कुतूहल-भरी आँखों से देखा। छत में पंखा था, रंगीन बल्ब थे, दीवारों पर तस्वीरें थीं। देर तक उन चीजों को टकटकी लगाये देखता रहा। मालती ने बड़े प्यार से पुकारा--मंगल !

मंगल ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा, जैसे कह रहा हो--आज तो हॅमा नहीं जाता मेम साहब ! क्या करूँ। आपसे कुछ हो सके तो कीजिए।

मालती ने झुनिया को बहुत-सी बातें समझाई और चलते-चलते पूछा--तेरे घर में कोई दूसरी औरत हो, तो गोबर से कह दे, दो-चार दिन के लिए बुला लावे। मुझे चेचक का डर है। कितनी दूर है तेरा घर ?

झुनिया ने अपने गाँव का नाम और पता बताया। अन्दाज से अट्ठारह-बीस कोस होंगे।

मालती को बेलारी याद था। बोली--वही गाँव तो नहीं, जिसके पच्छिम तरफ़ आध मील पर नदी है ?

'हाँ-हाँ मेम साहब, वही गाँव है। आपको कैसे मालूम ?'

'और जा कछ खच करत हा वह !