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पृष्ठ:गो-दान.djvu/३५०

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३५२ गोदान

इसी गाँव पर आधे से ज्यादा घरों पर बेदखली आ रही है; आबे। औरों की जो दशा होगी, वही उसकी भी होगी। भाग्य में सुख बदा होता, तो लड़का यों हाथ से निकल जाता?

साँझ हो गयी थी। वह इसी चिन्ता में डूबा बैठा था कि पण्डित दातादीन ने आकर कहा--क्या हुआ होरी, तुम्हारी बेदखली के बारे में? इन दिनों नोखेराम से मेरी बोल-चाल बन्द है। कुछ पता नहीं। सुना, तारीख को पन्द्रह दिन और रह गये हैं।

होरी ने उनके लिए खाट डालकर कहा--वह मालिक हैं, जो चाहें करें, मेरे पास रुपए होते, तो यह दुर्दशा क्यों होती। खाया नहीं, उड़ाया नहीं; लेकिन उपज ही न हो और जो हो भी, वह कौड़ियों के मोल बिके, तो किसान क्या करे?

'लेकिन जैजात तो बचानी ही पड़ेगी। निबाह कैसे होगा। बाप-दादों की इतनी ही निसानी बच रही है। वह निकल गयी, तो कहाँ रहोगे?'

'भगवान की मरजी है, मेरा क्या बस !'

'एक उपाय है जो तुम करो।'

होरी को जैसे अभय-दान मिल गया। इनके पाँव पड़कर बोला--बड़ा धरम होगा महाराज, तुम्हारे सिवा मेरा कौन है। मैं तो निरास हो गया था।

('निरास होने की कोई बात नहीं। बस, इतना ही समझ लो कि सुख में आदमी का धरम कुछ और होता है, दुःख में कुछ और। सुख में आदमी दान देता है, मगर दुःख में भीख तक माँगता है। उस समय आदमी का यही धरम हो जाता है। सरीर अच्छा रहता है तो हम बिना असनान-पूजा किये मुंह में पानी भी नहीं डालते; लेकिन बीमार हो जाते हैं, तो बिना नहाये-धोये, कपड़े पहने, खाट पर बैठे पथ्य लेते हैं। उस समय का यही धरम है। यहाँ हममें-तुममें कितना भेद है; लेकिन जगन्नाथपुरी में कोई भेद नहीं रहता। ऊँचे-नीचे समी एक पंगत में बैठकर खाते हैं। आपत्काल में श्रीरामचन्द्र ने सेवरी के जूठे फल खाये थे, बालि को छिपकर वध किया था। जब संकट में बड़े-बड़ों की मर्यादा टूट जाती है, तो हमारी-तुम्हारी कौन बात है ? रामसेवक महतो को तो जानते हो न?')

होरी ने निरुत्साह होकर कहा--हाँ, जानता क्यों नहीं।

'मेरा जजमान है। वड़ा अच्छा जमाना है उसका। खेती अलग, लेन-देन अलग। ऐसे रोब-दाब का आदमी ही नहीं देखा। कई महीने हुए उसकी औरत मर गयी है। सन्तान कोई नहीं। अगर रुपिया का ब्याह उससे करना चाहो, तो मैं उसे राजी कर लूंँ। मेरी बात वह कभी न टालेगा। लड़की सयानी हो गयी है, और जमाना बुरा है। कहीं कोई बात हो जाय, तो मुंँह में कालिख लग जाय। यह बड़ा अच्छा औसर है। लड़की का ब्याह भी हो जायगा, और तुम्हारे खेत भी बच जायेंगे। सारे खरचबरच से बचे जाते हो।'

रामसेवक होरी से दो ही चार साल छोटा था। ऐसे आदमी से रूपा के ब्याह करने का प्रस्ताव ही अपमानजनक था। कहाँ फूल-सी रूपा और कहाँ वह बूढ़ा ठूँठ। जीवन में