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पृष्ठ:गो-दान.djvu/३५७

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गोदान
 

'हमारे सिर-आँखों पर आयें ऐसे भले आदमियों के साथ रहने से चाहे पैसे कम भी मिलें; लेकिन ज्ञान बढ़ता है और आँखें खुलती हैं।'

उसी वक्त पण्डित दातादीन ने होरी को इशारे से बुलाया और दूर ले जाकर कमर से सौ-सौ रुपये के दो नोट निकालते हुए बोले--तुमने मेरी सलाह मान ली, बड़ा अच्छा किया। दोनों काम बन गये। कन्या से भी उरिन हो गये और बाप-दादों की निशानी भी बच गयी। मुझसे जो कुछ हो सका, मैंने तुम्हारे लिए कर दिया, अव तुम जानो, तुम्हारा काम जाने।

होरी ने रुपए लिए तो उसका हाथ कांँप रहा था, उसका सिर ऊपर न उठ सका, मुंँह से एक शब्द न निकला, जैसे अपमान के अथाह गढ़े में गिर पड़ा है और गिरता चला जाता है। आज तीस साल तक जीवन से लड़ते रहने के बाद वह परास्त हुआ है और ऐसा परास्त हुआ है कि मानों उसको नगर के द्वार पर खड़ा कर दिया गया है और जो आता है, उसके मुंँह पर थूक देता है। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है, भाइयो, मैं दया का पात्र हूँ, मैंने नहीं जाना, जेठ की लू कैसी होती है और माघ की वर्षा कैसी होती है ? इस देह को चीरकर देखो, इसमें कितना प्राण रह गया है, कितना ज़ख्मों से चूर, कितना ठोकरों से कुचला हुआ ! उससे पूछो, कभी तूने विश्राम के दर्शन किये, कभी तू छाँह में बैठा। उस पर यह अपमान ! और वह अब भी जीता है, कायर, लोभी, अधम। उसका सारा विश्वास जो अगाध होकर स्थूल और अन्धा हो गया था, मानो टूक-टूक उड़ गया है।

दातादीन ने कहा--तो मैं जाता हूँ। न हो, तो तुम इसी बखत नोखेराम के पास चले जाओ।

होरी दीनता से बोला--चला जाऊँगा महाराज ! मगर मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ है।


३६

दो दिन तक गाँव में खूब धूम-धाम रही। बाजे बजे, गाना-बजाना हुआ और रूपा रो-धोकर बिदा हो गयी; मगर होरी को किसी ने घर से निकलते न देखा। ऐसा छिपा बैठा था, जैसे मुंँह में कालिख लगी हो। मालती के आ जाने से चहल-पहल और बढ़ गयी। दूसरे गाँवों की स्त्रियाँ भी आ गयीं।

गोबर ने अपने शील-स्नेह से सारे गाँव को मुग्ध कर लिया है। ऐसा कोई घर न था, जहाँ वह अपने मीठे व्यवहार की याद न छोड़ आया हो। भोला तो उसके पैरों पर गिर पड़े। उनकी स्त्री ने उसको पान खिलाये और एक रुपया बिदायी दी और उसका लखनऊ का पता भी पूछा। कभी लखनऊ आयेगी तो उससे ज़रूर मिलेगी। अपने रुपए की उससे चर्चा न की।

तीसरे दिन जब गोबर चलने लगा, तो होरी ने धनिया के सामने आँखों में आँसू भरकर वह अपराध स्वीकार किया, जो कई दिन से उसकी आत्मा को मथ रहा था,