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गोदान
 


उसकी प्रकृति का जल सुखाकर कठोर और शुष्क बना दिया था,जिस पर एक बार फावड़ा भी उचट जाता था।

समीप आकर चौधरी का हाथ पकड़ने की चेष्टा करती हुई बोली-आदमी को क्यों भेज दूं। जो कुछ कहना हो,मुझसे कहो न। मैने कह दिया,मेरे बाँस न कटेंगे।

चौधरी हाथ छुड़ाता था,और पुन्नी बार-बार पकड़ लेती थी। एक मिनट तक यही हाथा-पाई होती रही। अन्त मे चौधरी ने उसे ज़ोर से पीछे ढकेल दिया। पुन्नी धक्का खाकर गिर पड़ी; मगर फिर सँभली और पाँव से तल्ली निकालकर चौधरी के सिर,मुंह,पीठ पर अन्धाधुन्ध जमाने लगी। बँसोर होकर उसे ढकेल दे? उसका यह अपमान! मारती जाती थी और रोती भी जाती थी। चौधरी उसे धक्का देकर-- नारी जाति पर बल का प्रयोग करके--गच्चा खा चुका था। खड़े-खड़े मार खाने के मिवा इस संकट से बचने की उसके पास और कोई दवा न थी।

{{Gap}]पुन्नी का रोना सुनकर होरी भी दौड़ा हुआ आया। पुन्नी ने उसे देखकर और ज़ोर मे चिल्लाना शुरू किया। होरी ने समझा, चौधरी ने पुनिया को मारा है। खून ने जोश मारा और अलगौझे की ऊँची वाँध को तोड़ता हुआ, सब कुछ अपने अन्दर समेटने के लिए बाहर निकल पड़ा। चौधरी को ज़ोर से एक लात जमाकर बोला--अव अपना भला चाहते हो चौधरी,तो यहाँ से चले जाओ,नही तुम्हारी लहास उठेगी। तुमने अपने को समझा क्या है? तुम्हारी इतनी मजाल कि मेरी बहू पर हाथ उठाओ।

चौधरी कसमे खा-खाकर अपनी सफाई देने लगा। तल्लियों की चोट मे उसकी अपराधी आत्मा मौन थी। यह लात उसे निरपराध मिली और उसके फूले हुए गाल आँसुओं से भीग गये। उसने तो बहू को छुआ भी नही। क्या वह इतना गॅवार है कि महतो के घर की औरतों पर हाथ उठायेगा।

होरी ने अविश्वास करके कहा-आँखों में धूल मत झोंको चौधरी, तुमने कुछ कहा नहीं, तो बहू झूठ-मूठ रोती है? रुपए की गर्मी है, तो वह निकाल दी जायगी। अलग हैं तो क्या हुआ, हैं तो एक खून। कोई तिरछी आँख से देखे,तो आँख निकाल लें।

पुन्नी चण्डी बनी हुई थी। गला फाड़कर बोली-तूने मुझे धक्का देकर गिरा नहीं दिया? खा जा अपने बेटे की कसम!

हीरा को भी खबर मिली कि चौधरी और पुनिया में लड़ाई हो रही है। चौधरी ने पुनिया को धक्का दिया। पुनिया ने उसे तल्लियों से पीटा। उसने पुर वहीं छोड़ा और औगी लिए घटनास्थल की ओर चला। गाँव में अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध था। छोटा डील, गठा हुआ शरीर,आँखें कौड़ी की तरह निकल आयी थीं और गर्दन की नसें तन गयी थीं; मगर उसे चौधरी पर क्रोध न था, क्रोध था पुनिया पर। वह क्यों चौधरी से लड़ी?क्यों उसकी इज्जत मिट्टी में मिला दी? बँसोर से लड़ने-झगड़ने का उसे क्या प्रयोजन था? उसे जाकर हीरा से सारा समाचार कह देना चाहिए था। हीरा जैसा उचित समझता, करता। वह उससे लड़ने क्यों गयी? उसका बस होता,तो वह पुनिया को पर्दे में रखता। पुनिया किसी बड़े से मुंह खोलकर बातें करे,यह उसे असह्य था। वह खुद