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पृष्ठ:गो-दान.djvu/३९

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गोदान
३७
 

होरी ने बाँस गिनने की ज़रूरत न समझी। चौधरी ऐसा आदमी नहीं है। फिर एकाध बाँस बेसी ही काट लेगा, तो क्या। रोज़ ही तो मँगनी बाँस कटते रहते हैं। सहालगों में तो मण्डप बनाने के लिए लोग दरजनों बाँस काट ले जाते हैं।

चौधरी ने साढ़े सात रुपए निकालकर उसके हाथ में रख दिये। होरी ने गिनकर कहा-और निकालो। हिसाब से ढाई और होते हैं।

चौधरी ने बेमुरौवती से कहा-पन्द्रह रुपए में तय हुए हैं कि नहीं?

‘पन्द्रह रुपए में नहीं,बीस रुपए में।'

'हीरा महतो ने तुम्हारे सामने पन्द्रह रुपए कहे थे। कहो तो बुला लाऊँ।'

'तय तो बीस रुपए में ही हुए थे चौधरी! अव तुम्हारी जीत है, जो चाहे कहो। ढाई रुपए निकलते हैं,तुम दो ही दे दो।'

मगर चौधरी कच्ची गोलियाँ न खेला था। अब उसे किसका डर। होरी के मुंह में तो ताला पड़ा हुआ था। क्या कहे, माथा ठोंककर रह गया। वस इतना बोला--यह अच्छी बात नहीं है,चौधरी,दो रुपए दवाकर राजा न हो जाओगे।

चौधरी तीक्ष्ण स्वर में बोला-और तुम क्या भाइयों के थोड़े-से पैसे दबाकर राजा हो जाओगे? ढाई रुपए पर अपना ईमान बिगाड़ रहे थे,उस पर मुझे उपदेस देते हो। अभी परदा खोल दूं,तो सिर नीचा हो जाय।

होरी पर जैसे सैकड़ों जूते पड़ गये। चौधरी तो रुपए सामने जमीन पर रखकर चला गया ; पर वह नीम के नीचे बैठा बड़ी देर तक पछताता रहा। वह कितना लोभी और स्वार्थी है, इसका उसे आज पता चला। चौधरी ने ढाई रुपए दे दिये होते, तो वह खुशी से कितना फूल उठता। अपनी चालाकी को सराहता कि बैठे-बैठाये ढाई रुपए मिल गये। ठोकर खाकर ही तो हम सावधानी के साथ पग उठाते हैं।

धनिया अन्दर चली गयी थी। बाहर आयी तो रुपए जमीन पर पड़े देखे,गिनकर बोली--और रुपए क्या हुए,दस न चाहिए?

होरी ने लम्बा मुंह बनाकर कहा--हीरा ने पन्द्रह रुपए में दे दिये, तो मैं क्या करता।

'हीरा पाँच रुपए में दे दे। हम नहीं देते इन दामों।'

'वहाँ मार-पीट हो रही थी। मै बीच में क्या बोलता।'

होरी ने अपनी पराजय अपने मन में ही डाल ली,जैसे कोई चोरी से आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़े और गिर पड़ने पर धूल झाड़ता हुआ उठ खड़ा हो कि कोई देख न ले। जीतकर आप अपनी धोखेबाजियों की डींग मार सकते है;जीत से सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।

धनिया पति को फटकारने लगी। ऐसे सुअवसर उसे बहुत कम मिलते थे। होरी उससे चतुर था;पर आज बाजी धनिया के हाथ थी। हाथ मटकाकर बोली-क्यों न हो,भाई ने पन्द्रह रुपए कह दिये,तो तुम कैसे टोकते। अरे राम-राम! लाड़ले भाई का दिल छोटा हो जाता कि नहीं। फिर जब इतना बड़ा अनर्थ हो रहा था कि लाड़ली