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पृष्ठ:गो-दान.djvu/७८

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गोदान
 

राय साहब ने मालती की ओर देखा––देवीजी, अब आपकी क्या सलाह है?

मालती का मुख-मण्डल तमतमा रहा था। बोलीं––होगा क्या, मेरी इतनी बेइज़ती हो रही है और आप लोग बैठे देख रहे हैं! बीस मर्दों के होते एक उजड्ड पठान मेरी इतनी दुर्गति कर रहा है और आप लोगों के खून में ज़रा भी गर्मी नहीं आती! आपको जान इतनी प्यारी है? क्यों एक आदमी बाहर जाकर शोर नहीं मचाता? क्यों आप लोग उस पर झपटकर उसके हाथ से बन्दूक नहीं छीन लेते? बन्दूक ही तो चलायेगा? चलाने दो। एक या दो की जान ही तो जायगी? जाने दो।

मगर देवीजी मर जाने को जितना आसान समझती थीं और लोग न समझते थे। कोई आदमी बाहर निकलने की फिर हिम्मत करे और पठान गुस्से में आकर दस-पाँच फैर कर दे, तो यहाँ सफ़ाया हो जायगा। बहुत होगा, पुलिस उसे फाँसी की सजा दे देगी। वह भी क्या ठीक। एक बड़े कबीले का सरदार है। उसे फाँसी देते हुए सरकार भी सोच-विचार करेगी। ऊपर से दबाव पड़ेगा। राजनीति के सामने न्याय को कौन पूछता है। हमारे ऊपर उलटे मुक़दमे दायर हो जायें और दण्डकारी पुलिस बिठा दी जाय, तो आश्चर्य नहीं; कितने मजे से हँसी-मज़ाक हो रहा था। अब तक ड्रामा का आनन्द उठाते होते। इस शैतान ने आकर एक नयी विपत्ति खड़ी कर दी, और ऐसा जान पड़ता है, बिना दो-एक खून किये मानेगा भी नहीं।

खन्ना ने मालती को फटकारा––देवीजी, आप तो हमें ऐसा लताड़ रही हैं मानो अपनी प्राण-रक्षा करना कोई पाप है; प्राण का मोह प्राणी-मात्र में होता है और हम लोगों में भी हो, तो कोई लज्जा की बात नहीं। आप हमारी जान इतनी सस्ती समझती हैं; यह देखकर मुझे खेद होता है। एक हजार का ही तो मुआमला है। आपके पास मुफ्त के एक हज़ार हैं, उसे देकर क्यों नही विदा कर देतीं? आप खुद अपनी बेइज्जती करा रही हैं, इसमें हमारा क्या दोष?

राय साहब ने गर्म होकर कहा––अगर इसने देवीजी को हाथ लगाया, तो चाहे मेरी लाश यहीं तड़पने लगे, मैं उससे भिड़ जाऊँगा। आखिर वह भी आदमी ही तो है।

मिर्ज़ा साहब ने सन्देह से सिर हिलाकर कहा––राय साहब, आप अभी इन सबों के मिज़ाज मे वाकिफ़ नहीं हैं। यह फैर करना शुरू करेगा, तो फिर किसी को ज़िन्दा न छोड़ेगा। इनका निशाना बेख़ता होता है।

मि० तंखा बेचारे आनेवाले चुनाव की समस्या सुलझाने आये थे। दस-पाँच हज़ार का वारा-न्यारा करके घर जाने का स्वप्न देख रहे थे। यहाँ जीवन ही संकट में पड़ गया। बोले––सबसे सरल उपाय वही है, जो अभी खन्नाजी ने बतलाया। एक हज़ार ही की बात है और रुपए मौजूद हैं, तो आप लोग क्यों इतना सोचविचार कर रहे हैं?

मिस मालती ने तंखा को तिरस्कार-भरी आँखों से देखा।

'आप लोग इतने कायर हैं, यह मैं न समझती थी।'

'मैं भी यह न समझता था कि आप को रुपए इतने प्यारे हैं और वह भी मुफ्त के!'