'मालती न जाने क्या देखकर उन पर लटू हुई जाती है।'
'मैं समझता हूँ,वह केवल तुम्हें जला रही है।'
'मुझे वह क्या जलायेंगी। बेचारी। मैं उन्हें खिलौने से ज्यादा नहीं समझता।'
'यह तो न कहो मिस्टर खन्ना,मिस मालती पर जान तो देते हो तुम।'
'यों तो मैं आपको भी यही इलज़ाम दे सकता हूँ।'
'मैं सचमुच खिलौना समझता हूँ। आप उन्हें प्रतिमा बनाये हुए हैं।'
खन्ना ने ज़ोर से कहक़हा मारा,हालाँकि हँसी की कोई बात न थी!
'अगर एक लोटा जल चढ़ा देने मे वरदान मिल जाय, तो क्या बुरा है।'
अबकी राय साहब ने जोर से कहक़हा मारा,जिसका कोई प्रयोजन न था।
'तब आपने उस देवी को समझा ही नहीं। आप जितनी ही उसकी पूजा करेंगे,उतना ही वह आप से दूर भागेगी। जितना ही दूर भागियेगा,उतना ही आपकी ओर दौड़ेगी।'
'तब तो उन्हें आपकी ओर दौड़ना चाहिए था।'
'मेरी ओर! मैं उस रसिक-समाज मे विलकुल बाहर हूँ मिस्टर खन्ना,सच कहता हूँ। मुझमें जितनी बुद्धि,जितना बल है, वह इस इलाके के प्रबन्ध में ही खर्च हो जाता है। घर के जितने प्राणी है,सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त;कोई उपासना में,कोई विषयवामना में। कोऊ काहू में मगन,कोऊ काहू में मगन। और इन सब अजगरों को भक्ष्य देना मेरा काम है,कर्तव्य है। मेरे बहुत से ताल्लुकेदार भाई भोग-विलास करते हैं,यह सब मैं जानता हूँ। मगर वह लोग घर फूंँककर तमाशा देखते हैं। क़र्ज़ का बोझ सिर पर लदा जा रहा है, रोज डिग्रियाँ हो रही है। जिससे लेते हैं,उसे देना नही जानते,चारों तरफ़ बदनाम। मैं तो ऐसी ज़िन्दगी से मर जाना अच्छा समझता हूँ। मालूम नहीं,किस संस्कार से मेरी आत्मा में ज़रा-सी जान बाकी रह गयी,जो मुझे देश और समाज के बन्धन में बाँधे हुए है। सत्याग्रह-आन्दोलन छिड़ा। मेरे सारे भाई गराब-कवाव में मस्त थे। मैं अपने को न रोक सका। जेल गया और लाखों रुपए की जेरबारी उठाई और अभी तक उसका तावान दे रहा हूंँ। मुझे उसका पछतावा नहीं है। बिलकुल नहीं। मुझे उसका गर्व है। मैं उस आदमी को आदमी नहीं समझता,जो देश और समाज की भलाई के लिए उद्योग न करे और बलिदान न करे। मुझे क्या अच्छा लगता है कि निर्जीव किसानों का रक्त चूसूंँ और अपने परिवारवालों की वासनाओं की तृप्ति के साधन जुटाऊँ;मगर करूंँ क्या? जिस व्यवस्था में पला और जिया,उससे घृणा होने पर भी उसका मोह त्याग नहीं सकता और उसी चरखे में रातदिन पड़ा रहता हूँ कि किसी तरह इज्जत-आबरू वची रहे,और आत्मा की हत्या न होने पाये। ऐसा आदमी मिस मालती क्या,किसी भी मिस के पीछे नहीं पड़ सकता,और पड़े तो उसका मर्वनाश ही समझिये। हाँ,थोड़ा-सा मनोरंजन कर लेना दूसरी बात है।
मिस्टर खन्ना भी साहसी आदमी थे,संग्राम में आगे बढ़नेवाले। दो वार जेल हो