पृष्ठ:चंदायन.djvu/१४१

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सम्भवत दोनोंका तात्पर्य एक ही वस्त्रसे है । वासुदेवशरण अग्रवालसे इसे चन्दनके रगका वस्त्र (चन्दनपट्ट) बताया है। हमारी धारणा है कि यह वह रेशमी वस्त्र है जिसे ज्योतिरीश्यर ठाकुरने वर्णरत्नाकरम चन्द्र- मण्डल कहा है। सम्भवत इसपर चन्द्रमा जैसी कोई आकृति छपी होती थी । बुखार यह पाठ निश्चित नहीं है । इसे नजारू भी पढ़ सकते हैं । पजार प्रतिका पाठ बजारू स्पष्ट है । नजारू और बजारू सार्थक न जान पडनेके कारण हमने बुखारू पाट स्वीकार किया है। यदि यह पाठ ठीक है तो इसका तात्पर्य बुरखारासे आने वाले किसी वस्त्रले होोगा। (६) चोला-चोळ देशका पना वस्त्र । सम्भवत काँजीवरम्के बने वस्त्रसे तात्पर्य है । यह भी सम्भव है कि चोला पाठ अशुद्ध हो और मूल पाठ चोली हो । उस अवस्था में वह परिधान होगा । (७) अमरी-अप्सरा। (रीलैण्ड्स ५३८) सिफ्ते जरीनहा चॉदा गोयद (आभूषण वर्णन) कुण्डर सुवन जरै ले हीरा । चहुँ दिसि पैठि विदारथ वीरा ॥१ अरु दुइ चूट सरग जनु तारा । टूटि परहि निसि होइ उजियारा ॥२ आवह उगसत नाक के फूली । नखत चार सूरज गा भूली ॥३ हार डोर औ सिकड़ी पूरी । अभरन भार परै जनु चूरी ॥४ दस ॲगुरिह अँगूठी पगनाई । कर कंगन फिर भरे कलाई ॥५ चूरा पायल बजहिं, गोवर होइ झंकार १६ नसत चाँद कर अभरन, अभरन चाँद सिंगार ॥७ टिप्पणी-(१) कुण्डर--कुण्टल ।। (२) सूट-पद्मावत म इस आभूषण का उल्लेख दो स्थलों पर (११०।४, ४७९/७) हुआ है। उसके एक उल्लेख (तहि पर छूट दीप दुइ बारे -११०४) से जान पड़ता है कि यह दोपरे आकारका गोल आभूषण था जो कानम पहना जाता था। (३) उगसत-विकसित होता हुआ ! नाक के फूली-नाक्म पहननेकी फूलनुमा कील !