पृष्ठ:चंदायन.djvu/२४६

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२३७ २७५ (रीलेण्ड्म २१९) तल्यीदने मैंना मालिन रा च परिस्तान बर महर (मैनाका मारिनको वुलाकर महरके घर भेजना) मैंनहि मालिन टोह बुलाई । ओरहन देड महरॉ पठाई ॥१ चॉद भुजंग राइ के धिया । अइस न कीज जस 4 किया ॥२ पूनिउँ मुख देसत उजियारा । आप कलंकी भा अॅपियारा ॥३ महरि महर के भयी महिं कानी । लवते आग उतरतेउँ पानी ॥४ असकै धिय दीन्हि मुकराई । [...] कर अन्त न माई ॥५ चार भुवन जग देसत, मोसेउँ चॉगर लागि ।६ जिंह अगरग अस लागै, जाइ देम तज भागि ॥७ टिप्पणी--(१) ओरहन- उपालम्भ, शिकायत । २७६ (रीरेण्ड्स २२०) रफ्तन गुल्फ्रोश दर खानये राय महर व पीरा इरतादन (राय महरके घर मालिनका जाना) यालिन पुहुप करेंड भर लई । राजमंदिर चल भीतर गई ॥१ महरिह सीस नाइ भइ ठाढ़ी । कुमुम करी ले देतस काही ॥२ हारचूर फूला पहराई । और फूल भर सेज रिछाई ॥३ फुनि मालिन यतै औधारी । यह तिहि निनवइ दास तुम्हारी ॥४ आज लोरके मंदिर बोलायड । चाँद कह ओरहन देइ पठायउ ॥५ जस ओरहन मैं कहा, तस ही कही न पारों ॥६ भल बात हो दोखी, किह लग कहत सँभारों ॥७