मुहा दाऊद लिखा है और गजेटियरोंमे भी उनका उल्लेख इसी रूपमे हुआ है। पर
मुनतसव-उत्तवारीख में अब्दुर्कादिर घयायूनीने उन मौलाना दाउद कहा है।' बीकानेर प्रतिवे आरम्भमे जो शीर्षक है उसमें भी वे मौलाना दाऊद डलमई कहे गये हैं। रीलैण्डस प्रतिमे भी उन उल्लेस एक स्थानपर मौलाना दाऊदये रूपमें हुआ है। इन प्राचीन उल्लेखोंसे जान पडता है कि दाऊद मौलाना यहे जाते थे। आधुनिक कयनका कि वे मुल्ला ये किसी प्राचीन सूत्रसे समर्थन नहीं होता । हो सकता है आधुनिक लेखकोंने पारसी लिपिमें लिखे मौलाना शब्दको क्सिी लेसन प्रमादचे कारण मुल्ला पट लिया हो । साथ ही इस सम्बन्धमे यह बात भी ध्यान देने की है चन्दायनकी परम्परामें लिखे गये प्रेमाख्यानक काव्योके रचायताओं, यथा-कुतरन, मंझन, जायसी आदि किसीके नामके आगे मुल्ला या मौलाना जैसी उपाधि नहीं पायी जाती। अतः यह सम्भावना भी कम नहीं है कि दाऊद भी मुल्ला और मौलाना, दोनोमेसे एक भी न न होकर, कोरे मन्दिक दाऊद ही रहे हो । मुल्ला और मौलाना दोनों ही मलिकके अपपाठ हो सकते है। ऐसा होना पारसी लिपिमे सहज है। पर जबतक इस बात स्पष्ट प्रमाण न मिल जाय, दाऊदको मौलाना दाऊद कहना ही उचित होगा । वे धर्मा ध्यक्ष (मुल्ला) की अपेक्षा विद्वान (मौलाना) ही अधिक जान पडते हैं। खकथनानुसार दाऊद शेख जैनदी (जैनुद्दीन)के शिष्य थे। अपर कालीन शेख अब्दुलहक कृत अखबार-उल-अखयारके अनुसार दाऊदके गुरु शेख जैनुद्दीन 'चिराग ए दिल्ली के नामसे प्रसिद्ध चिस्ती सन्त हजरत नसीरुद्दीन अवधीकी बड़ी बहन के बेटे थे। बहनके बेटे होनेरे साथ ही साथ वे हजरत नसीरुद्दीन शिष्य भी ये और खैर-उल-मजालिशके अनुसार उनके 'खादिमे खास' थे। इजरत नसीरुद्दीन अवधीके सम्पन्धमे तो कहनेकी आश्यक्ता नहीं कि ये दिहीके सुप्रसिद्ध सन्त हजरत निजामुद्दीन औल्यिाके प्रमुख शिष्य और उत्तराधिकारी थे । इस प्रकार दाऊद विस्ती सत परम्परा- की दिल्लीवाली प्रधान शाखाके सम्बन्ध रखते थे।
दाऊद रचित प्रेमाख्यानक काव्यये नामरे सम्बन्ध अभी हालतर यापी भ्रम रहा है । मिश्रबन्धुने अन्यका नामोल्लेख न करने पेवल इतना ही कहा था कि उन्होंने नरक चन्दाको फ्था लिखी। हरिऔधने उन्हें नूरक और चन्दा नामक दो अन्योंका रचयिता बताया । गजेटियरों में दाउदी रचनाका नाम चन्देनी और चन्द्रानी दिया गया है। रामकुमार वर्माने इसका नाम चन्दावन या चन्दावत दिया है। मुनतसव-उत्-तवारीख की जो मुद्रित प्रति और अग्रेजी अनुवाद प्राप्त हैं, उन दोनों १. पीछे देखिये, अनुशीलन, २०२। २. बही, पृ०५। ३. वही, पृ०४। ४. कवक ३६०।