पृष्ठ:चंदायन.djvu/३५७

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गवासींकत मैना-सतयन्ती गरासी दविखनी हिदी एक सुप्रसिद्ध कवि है । वे मुहम्मद कुतुबशाहके शासनकाल (१६११-१६२६ १०)में गोल्बुण्डा आये और वहाँ उह राजाश्रय प्राप्त हुआ। अब्दुल्ला कुतुबशाह (१६२६-१६७२ इ०)के गद्दीपर बैठनेपर वे राजकवि घोषित किये गये । राजविक रूपम गवासी शासक और उसक दरबारियोंके बीच लोकप्रिय ता थे ही, साथ ही समय-समयपर जटिल समस्याओर मुल्झानेमे भी शासकको सलाह दिया करते थे। वे गोलकुण्डाये गजदूता रूपम वीजापुर भेजे गये और अपने उस पदको उहोंने योग्यतासे निभाया 1 गवासीने गजल ओर मरसियों क अतिरिक्त कुछ स्थात्मक काध्य भी लिखे हैं, जिनमें मैना-सतवन्ती नाम मसनवी मी है । अभी तक यह प्रकाशित है। इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियाँ विभिन्न पुस्तकालयाम उपलब्ध है। हैदराबादक आसपिया पुस्तकालयकी एक प्रतिसे इस क्या काव्यक कुछ अश श्रीराम शर्माने दक्खिनीका पद्य और गद्यम उद्धृत किया है। उन द्वारा प्रस्तुत कथाके अधूरे रूपको ही हिन्दी लेखकोंने गरक चन्दाकी प्रेम-कथाका दक्पिनी रूप मानकर अनेक प्रकारकी कल्पनाएँ प्रस्तुत की हे । वस्तुत यह क्या लोरक-चदाकी प्रेम कथापर आधारित न होकर साधन कृत मैना-सत अथवा हमीदीकृत अस्मतनामाषा हो एक स्वतन रूप है। कविने उस क्थाको अपने ढगपर इस प्रकार उपस्थित किया है-~ क्सिी नगरमे घालावर नामक राजा था। उसकी एक अत्यत रूपवती पुत्री था, जिसका नाम चादा था । उसी राज्यमे लरक नामक एक ग्बाला रहता था। लोरका सम्बन्धमें इस काव्ययी कुछ प्रातयोंम कहा गया है कि वह किसी धनीका बेग था और उसका विवाह मैना मामय राजकुमारीस हुआ था और दोनोम परस्पर प्रगाढ प्रम था । दवविपाय से वे निधन हा गये। निदान लोरक अपना नगर छोडवर दुसरे नगरम जाकर पशु चरानेया काम करने लगा। एक दिन जब लोरक गाय चरापर वापस आ रहा था ता चाँदाकी दृष्टि उसपर पडा । उसे दरपर चादा उसपर आमत हो गयी। उसने उस अपन निकट १ आमफिया पुस्तकालय (हैदराबाद में तीन, सालारजग पुस्तकालय (दराबाद में नॉन इण्डिया भाफिम पुस्तरालय (रन्दन) में दा भौर जामिया मिलिया (दिल्ली)रे पुम्नवालय रमी # प्रात है। वाई विशिलया पुस्तकालय में भी सम्भवत इममी एक प्रति है।