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पृष्ठ:चंदायन.djvu/४३

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बम्बई प्रति-८५, ८६, ११५, १२१, १२४, १२५, १६१, १६२, १६६, १७०, १८२, २५९, २६०, २६२, २६५, २७१, २९६, ३१९, ३२६, ३४३, ३४६, ३९७, ३९९, ४०३, ४०५, ४०६, ४१६, ४१७, ४१८, ४२४, ४२५, ४२७, ४२८, ४३०, ४३१, ४३,४६,४७, ४८, ४५२ । कुल ४० मनेर शरीफ प्रति-२८९, २९०, २९१, २९४, २९५, २९७, ३०४, ३०५, ३०७, ३०८, ३०९, ३११, ३१२, ३१३, ३१४, ३१५, ३१६, ३२३, ३२४, ३२५, ३२६, ३३२, ३४८, ३५१, ३५२, ४५३, ३५४, २५५, ३५६, ३५७, ३५८, ३६० । कुल ३२ ___पंजाब प्रति--२१, ८८, ९१, १४, १५८, २०५, २०९, २५७, २६९, २७० । कुल १० काशी प्रति-१०९, १४६, २०२, २४०, १४१ । कुल ५ होफर पृष्ठ-४ । कुल १ इन कडवको के सम्बन्धमें भी हमारे सम्मुख कोई वैज्ञानिक माप-दण्ड (किटिकल ऐपरेटस) नहीं है, जिससे हम संशुद-पाठका निश्चय करें । केवल एक ही बात निश्चित है कि उनके पाट रीलैण्डस प्रतिके पाठसे भिन्न है। रीलैण्ड्स और दूसरी प्रतिके पाठो मेंसे कौन सा हम स्वीकार पर, यह हमारे विवेकका प्रश्न रहता है । अतः हमें अधिक उचित जान पड़ा कि जब २९२ कडवों के पाठ किसी एक प्रतिके है और अधिकारातः रीलैण्डस प्रतिके ही है तो इन कडवकों के लिए भी रीलेण्डस प्रति के ही पाट स्वीकार किये जाने और दूसरी प्रतियोंके पाठ विकल्प रूपमें दे दिए जाँय; मूल अथवा शुद्ध पाठका निर्णय पाटक पर छोड़ दिया जाय । केवल १२ कडवक ऐसे है, जिनके पाठ तीन प्रतियोंमें अर्थात् रीलेण्डस और बम्बई प्रतियोके अतिरिक्त रिसी एक अन्य प्रतिमें हैं । ये कड़वक इस प्रकार हैं:- रीलैण्ड्स, बम्बई और पंजाव प्रतियाँ-१५९, १६० । कुल २ रीलेण्डस, बम्बई और मनेरशरीफ प्रतियाँ-२९६, ३२२, ३२८, ३२९, ३४७, ३४९, ३५०, ३५१, ३५३ । कुल : रीलैण्ड्स, बम्बई और काशी प्रतियाँ-४०५ । कुल १ इन कडयों के परीक्षणसे ज्ञात होता है कि (१) रोलेण्ट्स और पंजाब प्रतियोंमे (२) सम्बई और मनेरारीफ प्रतियोमें और (३) बम्बई और काशी प्रतियों में परस्पर पाठ-साम्यकी बहुलता है। ऐसा जान पड़ता है कि रीलैण्ट्स और पंजार प्रतियाँ एक प्रति परम्पराकी दो शासाएँ है और सम्बई, मनेर शरीफ और याशी प्रतियाँ दूसरो परम्पराको तीन शाखाएँ है । इन दोनों परम्पराओंका सम्मन्ध इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:-