पृष्ठ:चंदायन.djvu/४८

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उस प्रदेशकी भाषावे कुछ शब्द रूपों और क्रियाओंका प्रयोग कविने किया है। इस प्रकार इस काव्यम किसी एक भाषाका स्वरूप नही है । यदि इसी तथ्यको स्वीकार कर कि काव्यकी भाषा पिसी एक प्रदेशकी भाषा है तो भी यह नहीं कहा जा सस्ता कि उसकी भापा दक्षिण कोसली है। यह शिलालेय माल्व प्रदश-धारसे प्रास हुआ है, दक्षिण कोसलसे उसका किसी प्रकार कोई सम्बन्ध नहा है। श्याममनोहर पाण्डेयकी यह धारणा कि दक्षिण कोसली अधीका एक वृष रूप है, भाषा विज्ञान ओर इतिहास दोनो दृष्टिसे अज्ञताका परिचायक और हास्या स्पद है । प्राचीन इतिहासमे दक्षिण कासल उस प्रदेशका नाम है, जो आजकल छत्तीस गढके नामसे अभिहित किया जाता है। छत्तीसगढ़ी भाषाका अधीने साथ किसी प्रकारका नेकट्य है, यह कहना कठिन है । चन्दायनकी भाषामो अवधी सिद्ध करने के लिए राउल वेलकी भापाको अयधीये पूर्व रूपका नमूना नहीं माना जा सकता। साथ ही यह तथ्य भी भुलाया नहीं जा सकता कि राउल वेलको भाषाका चन्दायनकी मापावे साथ एक हल्का सादृश्य है । राउल वेलकी वर्तमान कालिक लियाएँ-भावइ, उदीजइ आदि चन्दायनकी वर्तमानकालिक नित्या आपइ, भावइ, सुहावइये अत्यन्त निकर है। यह इस बाता द्योतक है कि राउल वेल और चन्दायनकी भाषाका निस्ट सम्बन्ध है और उनकी भाषा प्रादेशिक न होकर देशके विस्तृत भागम प्रसरित भापाका रूप है। चन्दायनकी भाषाके याकरणकी गहराईसे अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है। तभी भापावे सम्बन्धमे कुछ निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है। पर यह कार्य ग्रन्थके सशुद्ध पाठ उपस्थित किये जानेपर ही मुम्भव है। सामान्य रूपेण जो कुछ हम देख और समझ सके हैं, उसके आधारपर हमारी धारणा है कि दाऊदने अपने काव्यरे लिए ऐसी भाषाको अपनाया था जो अपभ्रश साहित्यको शन्द-परम्परासे विकसित होकर व्यापक रूपसे देशके विस्तृत भू भागम प्रचलित थी। यदि वह काफी विस्तृत क्षेत्रमे बोली नहीं तो समझी अवश्य जाती थी। चन्दायन संस्कृत शब्दों का प्रयोग यहुत ही कम है, उसमें प्राकृत और अपभ्र शसे देशज रूपमें ढले शब्दोंका ही बाहुल्य है। सुलक्जन, विचक्सन आदि शब्दोंका प्रयोग इस कायम अपभ्रश परम्परा अवशेषरे रूपमें देखा जा सकता है। चन्दायनके शब्दोंका हिन्दीये अनेक प्राचीन कायोंके साथ तुलनात्मक अध्ययनसे ऐसा ज्ञात होता है कि इस काव्यका उनके साथ निकटका सम्बन्ध है। इसका अर्थ यह नहीं कि कवि अरबी-फारसीय प्रभावसे अछूता है। उसने इन भाषाओं से भी शन्द लिये हैं, पर वे ऐसे हैं जो सम्मवत भारत भूमिको बोलचालको भाषामें पूर्णत सप गये थे। फिर भी यहा-कही इन शन्दोका प्रयोग विचिन अथवा बेमेल प्रतीत होता है । यथा- मैंना सबद जो पीर सुनाया ४२९१ (माहागरे लिए पीरका प्रयोग)। विहफै सोहम राज करावइ ४२११ (तीसरेके लिए सोहम सोयम) ।