पृष्ठ:चंदायन.djvu/७४

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सरग चरमा मेरा, और पम पंस भयि कार। सिरजन यनिज तुम्हारे, उपरे चूड़ न पार ॥११८ सूफी तत्वोंका अभाव मौलाना दाउदका प्रत्यक्ष सम्बन्ध सूपी सम्प्रदायरे सापकोंसे था। यूपी साधक प्रेमरे माध्यमसे परमात्माका नैरट्य प्राप्त करते है। उनका प्रेम निराकार ईश्वरके प्रति होता है, इस कारण उनपे लिए उसका वर्णन प्रतीक द्वारा ही सम्भव हो पाता है। अत वे अपने इम प्रेमश वर्णन लौफिक प्रेम-प्रदर्शन प्रतीयों द्वारा किया करते है । वे अपने दम आदर्श प्रमये वर्णनमें ईश्वर नारी रूपमें स्वीकार करते हैं और लौक्कि प्रेमरे वर्णनमें वे अलौक्ति प्रेमी झलक देसते हैं। दूसरे शब्दों में यदि हम कहना चाहे तो कह सकते हैं कि सूपियों द्वारा रचित प्रेमाख्यानर काव्य अन्योति अथवा रूपक (अलेगरी) हुआ करते है । वस्तुत पारसीरे अनेर प्रेम काय हजर अर्थात् रूपर कहे और माने जाते ही हैं। लैला-मजनू आदि प्रेमाख्यानोंकी गणना इसी ढग द्वयर्थक स्थाओंमे होती है। मुसलमान कवियों द्वारा रचित हिन्दी ये अनेक प्रेमाख्यान भी इसी रिसे सूपियोंकी प्रेम-मूत्र साधना पद्धतिपर आधारित माने जाते है। अत चन्दायन सम्बन्धमे भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वह भी लौकिर प्रेमरे आवरणमें अलौविक प्रेमको व्यक्त करनेवाला हजल अर्थात् रूपक ही होगा। इस अनुमानको काव्यर नायक नायिकाकै नामसे भी बल मिल सस्ता है । पदमारतमें जायसीने रत्नसेनको सूरज और पद्मावतीको चाँद कहा है और दोनों प्रेम, विरह और मिल्नकी यात कही है। चन्दायनमें दाऊदने नायक- नायिकाको सोधे-सीधे सूरज' और चाँदका नाम दिया है। गैरकका उल्लेस स्थान- स्थान पर कविने सूरज कह कर दिया है। यथा- सुरज सनेर चाँद कुंभलानी । १४७३ चाँद विरस्पत के पा परी । कारह मुरज देखें एक घरी ॥ १५९४ घाँद गुनिर मैं देखी, सुरज मन्दिर जिंह जाऊँ । ११९१६ मुरज घरहि बिरस्पत आयो । १२७३ प्रेमी प्रेमिका प्रसगमें सूरज चाँदको सशाम विद्वानों ने आध्यात्मिक प्रतीक दूँट निकाला है। सूर्य-चन्द्र प्रतीरात्मक स्पषी यारया करते हुए थासुदेवशरण अप्रथालने लिखा है कि प्रेमकी साधना द्वारा दो पृथक तत्त्व एक-एक दूसरेसे मिलकर अद्वय स्थिति प्राप्त करते हैं। इसी सम्मिलनको प्राचीन सिद्धोंकी परिमापामे युगनद्ध भाव, समरस या महामुख पहा गया है। प्रेमी-प्रेमिका. पी नयी परिभाषामें प्राचीन शिव-हाकि या सूर्य-चन्द्रके वर्णनोपो नया रूप प्राप्त हुआ। पुरर सूर्य स्त्री चन्द्रमा है। दोनों अद्वय तत्त्तके दो रूप हैं। सिद्ध १. सौरस गद रोगमा अपभ्रष्ट रूप (लोपतोलारक>ere >ोर है।