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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/११७

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वीरेन्द्रसिंह––कहो, देवीसिंह, खुश तो हो?

देवीसिंह––खुशी तो मेरी खरीदी हुई है! (और लोगों की तरफ देख कर) अच्छा, अब आप लोग जाइये। बहुत विलम्ब हो गया।

दरबारियों और खुशामदियों के चले जाने के बाद वीरेन्द्रसिंह ने देवीसिंह से पूछा––

वीरेन्द्रसिंह––कहो, उस अर्जी में जो कुछ लिखा था, सच था या झूठ?

देवीसिंह––उसमें जो कुछ लिखा था, वह बहुत ठीक था। ईश्वर की कृपा से शीघ्र ही उन दुष्टों का पता लग गया, मगर क्या कहें कुछ ऐसी ताज्जुब की बातें देखने में आई कि अभी तक बुद्धि चकरा रही है।

वीरेन्द्रसिंह––(हँस कर) उधर तुम ताज्जुब को बातें देखो, इधर हम लोग अद्भुत बातें देखें।

देवीसिंह––सो क्या?

वीरेन्द्रसिंह––पहले तुम अपना हाल कह लो तो यहाँ का सुनो!

देवीसिंह––बहुत अच्छा। फिर सुनिए। रामशिला पहाड़ी के नीचे मैंने एक कागज अपने हाथ से लिख कर चिपका दिया जिसमें यह लिखा था––

"हम खूब जानते हैं कि जो अग्निदत्त के विरुद्ध होता है उसका तुम लोग सिर काट लेते हो, जिसका घर चाहते हो लूट लेते हो। मैं डंके की चोट से कहता हूँ कि अग्निदत्त का दुश्मन मुझसे बढ़ के कोई न होगा और गयाजी में मुझसे बढ़ कर मालदार भी कोई नहीं है, जिस पर मजा यह है कि मैं अकेला हूँ, अब देखना चाहिए कि तुम लोग मेरा क्या कर लेते हो?"

आनन्दसिंह––अच्छा, तब क्या हुआ?"

देवीसिंह––उन दुष्टों का पता लगाने के उपाय तो मैंने और भी कई किए थे, मगर काम इसी से चला। उस राह से आने-जाने वाले सभी उस कागज को पढ़ते थे और चले जाते थे। मैं उस पहाड़ी के कुछ ऊपर जाकर पत्थर की चट्टान की आड़ में छिपा हुआ हर दम उसकी तरफ देखा करता था। एक दफे दो आदमी एक साथ वहाँ आये और उसे पढ़ मूंछों पर ताव देते शहर की तरफ चले गये। शाम को वे दोनों लौटे और फिर उस कागज को पढ़ सिर हिलाते बराबर की पहाड़ी की ओर चले गये। मैंने सोचा कि इनका पीछा जरूर करना चाहिये क्योंकि कागज के पढ़ने का असर सबसे ज्यादा इन्हीं दोनों पर हुआ है। आखिर मैंने उनका पीछा किया और जो सोचा था वही ठीक निकला। वे लोग पन्द्ररा-बीस आदमी हैं और खूब हट्टे-कट्टे और मुस्टंडे हैं। उसी झुण्ड में मैंने एक औरत को भी देखा। अहा, ऐसी खूबसूरत औरत तो मैंने आज तक नहीं देखी। पहले मैंने सोचा कि वह इन लोगों में से किसी की लड़की होगी, क्योंकि उसकी अवस्था बहुत कम थी, मगर नहीं, उसके हाव-भाव और उसकी हुकूमत-भरी बातचीत से मालूम हुआ कि वह उन सब की मालिक है, पर सच तो यह है कि मेरा जी इस बात पर भी नहीं जमता। उसकी चाल-ढाल, उसकी बढ़िया पोशाक और उसके जड़ाऊ कीमती गहनों पर, जिनमें सिर्फ खुश रंग कीमती मानिक ही जड़े हुए थे, ध्यान देने से दिल की कुछ