पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/११९

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औरत आई होगी जिसे मैंने वहाँ देखा है!"

वीरेन्द्रसिंह––यह शक भी मिटा ही डालना चाहिए।

देवीसिंह––उन लोगों का जमाव वहाँ रोज ही होता है जहाँ मैं देख आया हूँ, आज तारा या भैरों को अपने साथ ले चलूँगा। ये खुद ही देख लें कि वही औरत है या दूसरी।

वीरेन्द्रसिंह––ठीक है। आज ऐसा ही करना। हाँ, अब तुम अपना हाल और आगे कहो।

देवीसिंह––मुझे वहाँ यह भी मालूम हुआ कि उन दुष्टों ने हमेशा के लिए अपना डेरा उसी पहाड़ी में कायम किया है और बातचीत से यह भी जाना गया कि लूट और चोरी का माल भी वे लोग उसी ठिकाने कहीं रखते हैं। मैंने अभी बहुत खोज उन लोगों की नहीं की, जो कुछ मालूम हुआ था आपसे कहने के लिए चला आया। अब उन लोगों को गिरफ्तार करना कुछ मुश्किल नहीं है। हुक्म हो तो थोड़े से आदमी अपने साथ ले जाऊँ और आज ही उन लोगों को उस औरत के सहित गिरफ्तार कर लाऊँ।

वीरेन्द्रसिंह––आज तो तुम भैरों या तारा को अपने साथ ले जाओ। फिर कल उन लोगों की गिरफ्तारी की फिक्र की जायगी।

आखिर भैरोंसिंह को अपने साथ लेकर देवीसिंह बराबर के उस पहाड़ पर गए जो गयाजी से तीन-चार कोस की दूरी पर होगा। घूमघुमौवा और पेचीली पगडण्डियों को तय करते हुए पहर रात जाते-जाते ये दोनों उस खोह के पास पहुँच गए जिसमें वे बदमाश डाकू लोग रहते थे। उस खोह के पास ही एक और छोटी-सी गुफा थी जिसमें मुश्किल से दो आदमी बैठ सकते थे। इस गुफा में एक बारीक दरार ऐसी पड़ी हुई थी जिसमें ये दोनों ऐयार उस लम्बी-चौड़ी गुफा का हाल बखूबी देख सकते थे जिसमें वे डाकू लोग रहते थे। इस समय वे सब-के-सब वहाँ मौजूद भी थे, बल्कि वह औरत भी सरदार के तौर पर छोटी-सो गद्दी लगाए वहाँ मौजूद थी। ये दोनों ऐयार उस दरार से उन लोगों की बातचीत तो नहीं सुन सकते थे, मगर सूरत-शक्ल, भाव और इशारे अच्छी तरह देख सकते थे।

इन लोगों ने इस समय वहाँ पन्द्रह डाकुओं को बैठे हुए पाया और उस औरत को देख कर भैरोंसिंह ने पहचान लिया कि यह यह वही है जो कुँअर इन्द्रजीतसिंह के कमरे में आई थी। आज वह वैसी पोशाक या उन जेवरों को पहने हुए तो न थी, तो भी सूरत-शक्ल में किसी तरह का फर्क न था।

इन दोनों ऐयारों के पहुँचने बाद दो घण्टे तक वे डाकू लोग आपस में कुछ बातचीत करते रहे। इस बीच में कई डाकुओं ने दो-तीन दफे हाथ जोड़ कर उस औरत से कुछ कहा जिसके जवाब में उसने सिर हिला दिया, जिससे मालूम हुआ कि मंजूर नहीं किया। इतने ही में एक-दूसरी हसीन कमसिन और फुर्तीली औरत लपकती हुई वहाँ आ मौजूद हुई। उसके हाँफने और दम फूलने से मालूम होता था कि वह बहुत दूर से दौड़ती हुई आ रही है।

उस नई आई औरत ने न मालूम उस सरदार औरत के कान में झुक कर क्या